Siyaron Ki Baraat (सियारों की बारात) – हमने अक्सर सुन है के बड़े लोगों के बातें सच होती हैं, उनकी बातें गौर करनी चाहिए, उनके तजुर्बे का फायेदा उठान चाहिए। पर जो लोग ऐसा नहीं करते क्या सच में उनके साथ कुछ गलत होता है?
लाल साहब एक जाने माने व्यापारी थे। घर के नीचे ही इनकी जनरल स्टोर की अच्छी खासी दुकान थी। दुकान काफी याची चलती थी। धन की कोई कमी नहीं थी। पर वो कहते हैं न ज़िंदगी में हर एक को सब कुछ हस्सिल नहीं होता। उनकी पत्नी रेखा सन्तान ना होने कारण दुखी रहती थी। करीब छः साल बाद भी सन्तान का ना होना उनके लिए परेशानी का सबब बन गया था। इसीलिए रेखा चाहती थी किसी सन्त का आर्शीवाद प्राप्त हो जाए तो शायद काम सिद्ध हो जाए। दोनो में आपस में बहुत प्यार था। संयोगवश एक दिन जब दोनो छुट्टी वाले दिन दोपहर में खाना रखा रहे थे तब एक संत कीआवाज से उनके कान खड़े हुए। रेखा खाना छोड़कर बालकनी की तरफ लपकी। सन्त ने नीचे से ही कहा, बेटी खाने को कुछ मिलेगा क्या ? पता नहीं रेखा को क्यों अन्दर से लगा कि इस सन्त को खाना देना चाहिए। रेखा ने तुरन्त अपनी रसोई से एक थाली सजाई और सन्त को दे आई।
सन्त ने बड़ी सन्तुष्टि से भोजन किया और आर्शीवाद दिया और कहा, बेटी जिस सन्तान के लिए तुम तरस रही हो तो तुम्हे अवश्य प्राप्त होगी, तूने आज एक सन्त की भूख शांत की है ये आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा, तेरी गोद जल्द ही भर जाएगी। रेखा खुशी से झूमती हुई लालजी के पास गई और सारा किस्सा सुनाया । लालजी भी, जो अब निराश हो चुके थे बोले क्या पता हमारे घर नर के रूप में नारायण आए हो, जिस उम्मीद को हम छोड़ते जा रहे थे आज संत जी उसे दोबारा जग गए, काश उनकी वाणी सिद्ध हो जाए। सन्त जी की वाणी रंग ले आई। रेखा ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया और उसका नाम रुपा रखा। दोनों को जीने का एक सहारा मिल गया। रेखा को जो दिन काटने को दौड़ता था, अब समय का पता ही नहीं चलता था। लालजी जब भी घर लौटते रेखा की जुबान पर रूपा की बातों के अतिरिक्त कोई बात नहीं होती थी, लालजी भी खुश थे और मन ही मन उस सन्त का और नारायण का धन्यवाद करते । रूपा जब दो साल की हो गई तब भी वह कुछ बोलती नही थी। डाक्टर से परामर्श किया तो उसने बताया आपकी बेटी तो जन्म से गूंगी है, ये बोल नही पाएगी। दोनो की खुशियों पर जैसे बिजली गिर गई हो, फिर भी उन्होने हिम्मत नहीं हारी । अन्य कई जगह दिखाया, मगर सबका ही जबाब था। दोनो पति पत्नी उदास रहने लगे।
हमारी कहानी Mature Hindi story – siyaron ki baraat में एक और किरदार से मिलिये ।
उनकी पड़ोस में चारु नाम की पड़ोसन रहती थी, उसके भी एक बेटी थी । वो भी गूंगी थी जिसकी उम्र 5 बरस की थी। चारू रेखा से मन मन बहुत जलती थी, वैसे बाहर से बहुत ही मीठी रहती थी। जब से चारु ने रेखा की बेटी को देखा था तब से वो उससे बहुत कुढ़ती थी। चारु नहीं जानती थी कि रूपा भी गूंगी है । क्योंकि रेखा ने यह बात किसी को बताई नही थी। रेखा उदासी के बादलों में बहती हुई एक दिन एक तलब में मछलियों को दाना दे रही थी, तभी उसे एक मछली के मुंह में एक पत्ता दिखाई दिया, मछली उछली और उस पत्ते को रेखा के पास फेंक कर दाना खाने लगी रेखा ने वो पत्ता उठाया और उसे देखा और उस पर एक गांव किराना का नाम लिखा था, पहले तो फेंकने लगी फिर पता नहीं क्या सोच का घर को उठा लाई । शाम को लालजी को उसने वो फ्ता दिखाया | लालजी ने पत्ता देखकर कहा, यहां से करीब 200 km दूर एक छोटा सा गांव है किराना, सुना तो है पर ज्यादा जानकारी नहीं है, मेरे पास उस गो का एक लड़का माल लेने लेन आता है, अब जब भी आएगा तो पूछूंगा, शायद वो मछली तुम करना चाहती हो। अगले दिन ही वो व्यापारी आ गया। लालजी ने किराना गांव के बारे मे पूछा तो पहले तो उसने लालजी को आश्चर्यमही नजरों से देखा, फिर बोला, खेठजी बड़ा खतरनाक गांव है।
सियारों की बारात निकालती है वहाँ तो , पर हां, एक खास बात भी है। वहाँ एक मूक बाबा है जो ऐसे बच्चों का इलाज करते हैं जिन्हे शहर के डॉक्टर जवाब दे देते हैं। लालजी पहले तो डर गए, फिर बोले” वो मूक बाबा कहां मिलेंगे “। व्यापारी बोला, किराना गांव में घुसते ही एक काली हवेली है जिसमें वो रहते हैं, बहुत ही अच्छे इन्सान हैं, मददगार है, जो भी आप खुशी से दोगें रख लेंगे। चलना हो तो मैं भी आपके साथ चल पड़ूँगा । लालजी मन नही बना पा रहे थे, रेखा भी सारी बात सुनकर हां में सर नहीं हिला पा रही थी मगर बेटी के भविष्य का सवाल था। दोनों ने जाने की ठान ली। दोनो मौका देखकर किराना गांव पहुंच कर काली हवेली में मूक बाबा से मिले । बाबा ने बच्ची को देखा और लिख कर बताया कि ये बिल्कुल ठीक हो जाएगी, पर तुम्हे बहुत ही हिम्मत से और विश्वास से काम लेना होगा। दोनो के चेहरे पर खुशी की लकीरे उभरने लगी, पर जब शिष्य ने सारी विधि समझाई तो उनके होश उड़ गए। एक बार तो वो रूपा को उठाकर भागने लगे मगर मूक बाबा ने कटोरा बजाते हुए उन्हें इशारे से बिठाया कहा “भगवान पर विश्वास करो, तुम यहां तक शायद किसी नेक आत्मा की बदौलत ही आए हो, बच्ची का जीवन सवार जाएगा। बाकी तुम्हारी मर्जी है, मुझे किसी चीज का लालच नहीं है।
“कई बार इंसान ऐसे दौराहे पर आकर फस जाता है कि उसे कोई उपाय नहीं सूझता।” – Siyaron Ki Baraat (सियारों की बारात)
फिर वो भगवान भरोसे ही कोई राह पकड़ लेता है। लालजी के साथ भी ऐसा ही हुआ। रात के बारह बजे मूक बाबा और उनके शिष्य के साथ लालजी और रेखा को एक मचान पर बिठा दिया गया। बच्ची को उनके सामने एक बरगद के पेड़ के नीचे एक गद्दे पर लिटा दिया। बरगद के पेड़ के पास एक बहुत बड़ी बौंड़री बनी हुई थी। तभी वहां रोशनी हो गई और बहुत सारे सियार उस गोल बाऊंड्री में खड़े होकर घूम घूम कर नृत्य करने लगे। वैसे दृष्य बड़ा अनोखा था, काल्पनिक सा लग रहा था, मगर अपनी बच्ची को उनके बीच देखकर रेखा अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। मूक बाबा बार बार हाथ के इशारे से हिम्मत बंधा रहे थे कि कुछ नहीं होगा रूपा को। 1/2 घंटे बाद ही सिचारों का नृत्य थमा , फिर सब लाइन बना कर वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद दोनों के जान में जान आई। तभी बरगद के पेड़ से कुछ बुन्दे पानी की गिरी जो रूपा के मुख पर पड़ी, ऐसा होते ही मचान बाबा मचान से कूदे और रूपा को उठा लाए, उन्हें भी नीचे आने को कहा, दोनो रूपा को सही सलामत पाकर बहुत खुश हुए।
मूक बाबा ने काली हवेली ले जा कर कर कहा” अब तुम्हारी बच्ची घर पहुंचते पहुंचते बोल पड़ेगी।
लालजी ने मूक बाबा को धन दिया और उनका आशीर्वाद लेकर अगली सुबह ही लौट आए। यह उन दोनों के लिए किसी करिश्मे से कम नहीं था क्योंकि रूपा अब बोलने लगी थी। रूपा ने मन ही मन उस मछली को धन्यवाद दिया।
कुछ दिनों बाद चारु रेखा से मिलने आई। रेखा के मुंह से निकल गया कि हमारी बच्ची गूंगी थी अब एक मूक बाबा की कृपा से बोलने लगी। चारू ये सुनते हो भौचक्की रह गई क्योंकि उसकी बेटी भी गूंगी थी। चारू मन से कुटिल और इर्शायालु स्वभाव की थी, मगर अब वो रेखा के आगे गिड़गिड़ाने लगी कि मुझे भी बता दो शायद मेरी बेटी भी ठीक हो जाए। रेखा नरम दिल की थी उसने सोचा कि किसी का भला होता है तो मेरा क्या जाता है। रेखा ने सारी बाते उसे ध्यान से समझाई, साथ में कई बार ये भी कह दिया कि जब बच्ची को अकेले वृक्ष के नीचे रखेंगे तो कलेजे को थाम कर बैठना होगा, उस समय की हरकत परेशानी में डाल सकती है, ऐसे समय में संयम रखना असंभव सा लगता है लेकिन रखना पड़ेगा |
चारु सभी बातें समझकर अपनी बच्ची को लेकर गांव पहुंच जाती है। सारा घटनाक्रम उसी प्रकार चलता है जैसा कि रेखा के साथ हुआ था। चारु ने अपनी बिटिया को वहाँ लिटा दिया और मचान से देखने लगी । सिचारों का नृत्य देखकर वो इतनी डर गई के अपनी बेटी को बचाने के लिए वो मचान से कूद गई। दौड़ती हुई जैसे ही उस वृक्ष के पास पहुंची, सारे सियार गायब हो गए, बस वहां उसकी बेटी हसती हुई लेटी थी। बेटी को देख कर उसकी जान में जान आई। तब तक मूक बाबा भी अपने शिष्य के साथ वहां पहुंच चुके थे। उन्होंने जैसे ही उसकी बेटी को उठाया कुछ बूंदे चारु पर पड़ गई और कुछ उसकी बेटी पर। मूक बाबा गुस्से में बोले, “मूर्ख स्त्री ये तूने क्या किया, सारे खेल का सत्यानाश कर दिया, ये लो अपनी बेटी और लौट जाओ अपने घर ।“ तभी चारू के पति ने कहा, बाबा अब क्या होगा। मूक बाबा क्रोधित तो थे ही, बोले “तुम्हारी बेटी बोल तो सकेगी पर ये सारी जिंदगी हकली रहेगी क्योकि चारु ने जो विघ्न डाला है तो सिचारों के श्राप से चारू की आवाज चली जाएगी। इसीलिए ये जिन्दगी भर बोल नहीं सकेगी क्योंकि यहां केवल 7 साल तक के बच्चों को इस पावन वृक्ष का फल मिलता है। मुझे अफसोस है मगर अब कुछ नहीं हो सकता।
चारू की आवाज चली गई और उसकी बेटी बोलने लगी पर हकला कर | चारु की शक की नज़र और जल्दबाजी का नतीजा मिल चुका था। चारु ये भी सोच रही थी कि रेखा ने उसे जान बूझ कर हिलने को मना किया है, कपटी मन सच को पहचानने में भूल कर ही जाता है।
Moral – Siyaron Ki Baraat (सियारों की बारात)
हमें अपने जीवन में शक का बीज नहीं बोन चाहिए। विश्वास हमारे जीवन की विशेष पूजी है। जहां शक की गुंजाइश हो वहां कदम आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। वैसे ये कहानी बहुत पुराने जमाने सत्यकथा है मगर कहानी को मनोरंजक बनाने के लिए कुछ काल्पनिक बातें भी है।
Writer – Anand Bansal
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