Zindagi Ya Maut – परिस्थिति ही इंसान को आस्तिक बनाता है और परिस्थिति ही उसे नास्तिक । अब सोचिए जो इंसान न आस्तिक है न नास्तिक वो क्या होगा ? क्या ऐसा भी कोई होता होगा ? कई लोगो के लिए उनका कर्म धर्म होता है , कई के लिए उनका धर्म कर्म होता है ।
आज की हमारी कहानी में हमारे किरदार का धर्म और कर्म उसका परिवार है ।
Zindagi Ya Maut Part 1 – मुझे आज भी वो दिन याद है जब प्रिया ने पहली बार मुझे अपने नन्हे हाथों से छुआ था। उसकी वो छोटी छोटी मखमल सी उंगलियां , उसका मुझे इस मासूमियत से देखना जैसा मेरे सारा प्यार सिर्फ उसके लिए ही है। शायद वो feelings बयान करना possible ही नहीं ।। मैं राजीव , ये मेरी कहानी है , मेरी और संजना की शादी को 7 साल हो गए थे पर मैं और संजना अभी तक एक बच्चे के सुख से वंचित थे। शायद ही कोई डॉक्टर और कोई मंदिर होगा जहां हमने फरियाद ना की हो। पर कहते है ना भगवान के घर पे देर है पर अंधेर नही। एक दिन हमारी फरियाद सुन ली गई। और प्रिया के रूप में हमें अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा तौहफा मिला। आपकी सारी जिंदगी, सारे सपने आपके अपने बच्चे में सिमट जाते है। मेरी प्रिया सबसे अलग थी। उसके घुंघराले बाल और झील सी नीली आंखें सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी। और जब वो तुतलाके पापा पापा बोलती थी तो अपने सारे काम छोड़ के मैं उसके पास आ जाया करता था। मैं संजना और प्रिया अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थे। हा मेरी income कोई बहुत ज़्यादा नही थी पर भगवान ने इतना तो दिया ही था के अपने परिवार को एक basic lifestyle तो दे सकूं। मुझे याद है प्रिया का वो स्कूल का पहला दिन , इतना तो वो भी नही डर रही होगी जितना के मुझे उसको स्कूल में अकेला छोड़ने में लग रहा था।
प्रिया के बाद संजना और मुझे दूसरे बच्चे की चाहत ही नहीं थी। हमारा एक ही aim था , प्रिया की best से best bought up ।
हमने बड़ी धूम धाम से उसका 11th birthday celebrate किया। प्रिया तो मानो इतने सारे gifts देखके पागल ही हो गई थी, पर संजना बोली “बाकी के gifts कल खोलेंगे अब तुम सो जाओ सुबह स्कूल जाना है।“ अगली सुबह जब संजना ने प्रिया को जगाना चाहा तो प्रिया उठ ही नहीं रही थी। बार बार हिलाने पर नहीं उठी। संजना भागी भागी मेरे पास आई ।
“राजीव राजीव सुनो जरा बाथरूम से बाहर आओ जल्दी, प्रिया उठ ही नहीं रही।“ मैंने सोचा के शायद कल birthday party की वजह से थक गई होगी , मैं fresh होके बाहर निकला और प्रिया के रूम में जाके उसके पास बैठ कर उसके बालों में हाथ फेरने लगा।
“प्रिया बेटे उठ जाओ , मेरी परी को स्कूल नही जाना क्या। उठ जा लाडो।“
पर वो तो मानो बेसुध होके लेटी हुई थी। मैने उसे हिलाया पर वो तो टस से मस भी नही हुई। मेरी धड़कन मानो रुक ही गई , मानो मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया हो । तभी संजना बोली चलो चलो जल्दी इसको hospital लेके जाना है। जल्दी से गाड़ी निकालो। मुझे नहीं याद वो हॉस्पिटल तक का रास्ता मैने कैसे निकाला। बस दिल को ये तसल्ली थी के प्रिया की सांसें अभी चल रही है।
हॉस्पिटल पहुंचते ही हमने प्रिया को emergency ward में admit करा दिया और भला हो उस doctor का जिसने बिना देर किए treatment शुरू कर दिया। करीब 2 घंटे बाद doctor ने प्रिया के कुछ test kअरवाये। प्रिया अभी भी emergency ward में ही थी। मेरी छोटी सी बच्ची के कोमल से हाथ पे calendula लगाया हुआ था। उसके मुंह पे oxygen mask लगा हुआ था।
मेरा तो कलेजा जैसे बाहर आ गया था। मैं ये सब नहीं देख पा रहा था। मन कर रहा था के अपनी प्रिया को यहां से उठा के सब छोड़ छाड़ के कही दूर ले चलूं। बस अब भगवान से यही दुआ थी की प्रिया की reports ठीक आए। दो दिन डॉक्टर ने हमे अपने पास बुलाया। प्रिय की रेपोर्ट्स उसके सामने रखी थी। doctor ने कहा के प्रिया के पास ज़्यादा दिन नही बचे उसे आखिरी stage का blood cancer हैं। मुझे तो अपने कानो पे विश्वास ही नहीं हुआ ।
Doctors की लाख कोशिश पे भी प्रिया की ज़िंदगी घटती जा रही थी।
भला मेरे जैसे इंसान के साथ जिसने आजतक किसी का बुरा नही किया , आजतक किसी को दुख नहीं दिया। मैं तो भगवान को भी इतना मानता हूं, नही भगवान मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकता। हम दोनों अब अपनी बची के पास ही रहते थे। मैंने नौकरी भी छोड़ दी थी। आज मेरी बची की ज़िंदगी का आखिरी दिन था। कुछ ही घंटे थे उसके पास।अपनी बच्ची को ऐसे मरते नहीं देख प रहा था। उसके आगे रो भी नहीं सकता था। जी कर रहा था के फूट फूट कर, चीख चीख कर रौ, मेरी बची को मुझसे दूर मत करो। ये सोचते सोचते मैं मैं फोरण उठ कर बाथरूम में चला गया। अपने आंसुओं को छुपाने के लिए अपना मुंह धोने लगा , पर ये आंसू थम ही नहीं रहे थे।फूट फूट कर रो रहा था। मेरा शरीर अब मेरा साथ छोड़ रहा था।
तभी पीछे एक आहट हुई और धीमी सी आवाज़ आई “तुम्हारी बेटी को कुछ नही होगा।“
मुझे ऐसा लगा किसी ने मेरे कान में कुछ कहा है। मैं जैसे ही पीछे मुड़ा तो देखा एक लंबा सा आदमी काले over कोर्ट पहने खड़ा हुआ दिखा। मैं उसको एक टुक देखता रहा, वो फिर बोला “तुम्हारी बेटी को कुछ नही होगा।“
वो इतनी दूर खाद्य बोल रहा था पर मुझे लगा आवाज मेरे दीमाग में आ रही है।
मैंने पुछा “आप कौन ? आप इसी hospital के doctor हैं?
वो बोला “तुम्हे ये जान ने की ज़रूरत नही के में कौन , अभी तुम्हे ये देखना है के तुम्हारी बेटी कैसे बचेगी और दुनिया का कोई चमत्कार उसे नही बचा सकता मेरे अलावा। अगर तुम मेरी सारी बातें मानते हो तो मैं गारंटी देता हूं के तुम्हारी बेटी तुम्हारे साथ ही रहेगी जब तक तुम चाहोगे।“
मैंने कहा “भला कौन बाप नही चाहेगा के उसका बच्चा हमेशा उसके साथ रहे तुम बताओ मैं अपनी बेटी के लिए सब कुछ करने के लिए तय्यार हूं कितने पैसे लगेंगे बताओ, में अपने आप को गिरवी रख दूंगा बस तुम दाम बताओ ।“
उसने एक हल्की सी smile देते हुए कहा “कुछ चीजें पैसे से भी नही मिल सकती, जैसे अभी तुम्हारी बेटी की जान।“
मैने कहा “तुम बताओ तो सही मुझे क्या करना होगा।“
वो बोला “मैं तुम्हे कुछ task दूंगा और तुम्हे वो निर्धारित समय में पूरे करने होंगे, ये कोई game के task नही असल ज़िंदगी के task है जब तक तुम वो task करते रहोगे तब तक तुम्हारी बेटी की सांसें चलती रहेगी ? कैसे task मुझे समझ नही आ रहा। वो बोला के अभी तुम सिर्फ ये समझो के तुम्हे अपनी बेटी की जान बचानी है, धीरे धीरे बाकी बातें भी समझ में आ जायेंगी।“
मैने पूछा “अगर मैं task पूरा ना कर पाया तो ? वो बोला के task रुका तो तुम्हारी बेटी की सांसें रुकी , फैसला तुम्हारा है।“
मैं सोच में पड़ गया। क्या करू? क्या इस पे विश्वास करू? क्या कहेगा करने को? लेकिन कोई और चार भी तो नहीं है। मेरी बेटी साँसे कुछ ही घंटों की मेहमान रह गई है।
मैने आगे कोई भी सवाल नही किया। में तय्यार था अपनी बेटी को बचाने के लिए।
उसने कहा “अब तुम बाहर reception पे बैठ के इंतजार करो, मैं तुम्हारी बेटी का procedure शुरू करवाता हूं ब शर्त के तुम procedure room में नहीं आओगे, ये कहके वो वहां से चला गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था पर कहते ना ‘के डूबते को तिनके का सहारा बहुत है तो इस वक्त वो आदमी मेरे लिए उस ही तिनके के सामान था।‘
अब मैं बाहर reception पे आके बैठ गया। तभी अचानक पूरे hospital की light चली गई। एकदम गुप अंधेरा बस दूर एक लाल रंग का bulb चलता दिख रहा था जो प्रिया के रूम का था। वो इस बात का संकेत दे रहा था के अब procedure शुरू हो चुका है। अभी मैं उस light को देख ही रहा था तभी अचानक से एक आदमी ने अंधेरे में मुझे एक कागज़ का टुकड़ा थमा दिया और आगे चल दिया।
मैने अपने फ़ोन की torch on की और उसपे लिखा पढ़ने लगा।
नीचे मुर्दाघर से शीला D’Souza के फेफड़े लाओ।
मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गई। फेफड़े लाओ? भला ये, मैं कैसे कर सकता हूं, मैंने ज़िन्दगी में आजतक एक मक्खी नही मारी और ये मुझे फेफड़े निकालने के लिए कहे रहे है। ये घिनौना काम नही कर सकता मैं।
इंसान मरा भी है तो क्या , किसी शरीर की चीरा फाड़ी कैसे कर सकता हूँ । मैं ये सब सोच ही रहा था तभी देखा के प्रिया के रूम से जो red light आ रही थी वो blink होनी शुरू हो गई। मुझे याद आया प्रिया की जान अपनी बेटी की जान बचानी है। मुझे ये task करना ही होगा। और मैं चल पड़ा मुर्दाघर की तरफ़। अंधेरे की वजह से कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा था फिर भी मैं एक रूम में घुस गया पर वो मुर्दाघर नही लग रहा था कोई reception रूम जैसा था। बाहर निकलते समय cctv कमेरे को देख कर मैं घबरा गया । cctv footage में सब record हो जाएगा, मुझे शरीर के अंगों की तस्कररी के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया तो ? गौर से देखा तो कैमरा बंद पड़ा है। मेरी जान में जान आई और मैं उस रूम से बाहर आ गया। तभी मैंने देखा बाहर एक compounder की dress पड़ी हुई है, मैंने झट से वो पहन ली और आगे चल पड़ा। अब मुझे उस co oridor में सामने एक रूम दिखाई दिया जिसके बाहर लिखा था मुर्दाघर।
मैं धीरे धीरे डरता हुआ उस रूम में पहुंचा और शीला का मृत शरीर ढूढने लगा, पर सारी जगह ढूंढने पर भी मुझे शीला की dead body नही दिखाई दी। तभी पीछे से मुझे लगा के कोई परछाई गई हो। इतनी बड़ी परछाई, जमीन से लेकर दीवार तक , किसी दैत्य की तरह। क्या था फिर ये। तभी अचानक से आवाज़ आई क्या चाहिए तुम्हे इस वक्त यहां क्यों आए हो? इस घबराहट में मेरा फोन नीचे गिर गया और मैने फ़ोन उठाते उठाते बोला के मुझे doctor ने भेजा है कुछ files यहां रखने के लिए ये कहते कहते जब मैं ऊपर उठा और अपनी फोन की torch सामने मारी तो देखा एक नर्स खड़ी हुई है । उसके batch पे नजर गई तो शीला d, souza लिखा हुआ था ।
क्या….. इस शीला के फेफड़े निकालने का काम दिया है मुझे। पर ये तो जिंदा है। ये task, ये कैसा task है। मैं जैसे सुन ही पड़ गया। इसे मारना होगा? मैं।। किसी का खून???एक तरफ अपनी बेटी का मासूम चेहरा सामने या रहा था और एक तरफ मेरे हाथ कांप रहे थे।
मैं ये सब सोच ही रहा था के शीला मेरे पास आई और पता नहीं कैसे मेरे अंदर का पिता मुझे पे हावी हो गया। मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसका गला दबाना शुरू कर दिया।
मेरे अंदर का इंसान उससे माफी मांग रहा था और एक मजबूर पिता उसे जान से मार रहा था। शीला अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर मेरे सिर पे तो बस अपनी बेटी को बचाने का जुनून था। उसके मरने के बाद मैने उसे टेबल पे लिटाया और side पे रखा scalpel उठा कर पेट काटना शुरू कर दिया। मुझे तो सही से पता भी नही था के फेफड़े होते कहा है। पर मैं अपनी बेटी के प्यार में अंधा बस उसके फेफड़े निकालने में लगा हुआ था। बड़ी मुश्किल से मैंने उसके शरीर को चीर कर फेफड़े निकाले और पास रखे एक जार में रख दिए। चारों तरफ खून ही खून, मुझे खुद से भी बदबू या रही थी। तभी देखा की काले over कोर्ट वाला आदमी मेरे सामने खड़ा हुआ है। बोला तुम्हारा पहला task पूरा होता है जाओ अपनी बेटी से मिल लो अब वो भी ठीक हो गई है। यहाँ से आगे अब मैं सब संभाल लूँगा। मैने अपनी खून से रंगी componder dress उतरी, बाथरूम में जाके अपने हाथ धोए, खुद की हालत सुधारी और सीधा प्रिया के रूम में चला गया। वहा प्रिया आंखें खोले लेटी हुई थी और जैसे ही उसने मुझे देखा ज़ोर से पापा पापा चिल्लाने लगी। मैने भी भाग के अपनी बची के गले lअगग गया। तभी संजना आई और बोली राजीव doctors कह रहे है के ये तो चमत्कार हो गया। प्रिया के नए blood test sample में cancer का नामो निशान तक नही है। doctors कह रहे हैं के ऐसा चमत्कार तो उन्होंने आजतक नहीं देखा।
मैं समझ गया था के वो चमत्कार है या शैतान से किया हुआ सौदा ।
अब मेरी प्रिया 18 साल की हो गई है। मुझे समय समय पे टास्क दिए जाते हैं और मैं आज भी अपनी प्रिया kkओ अपने साथ रखने के लिए उन्हे पूरा करता हु । कभी किसी को अपनी car से accidently मार कर, कभी किसी को पहाड़ी से धक्का दे कर। कभी किसी की आंखें निकाल कर तो कभी किसी का दिल निकाल कर। शुरू शुरू में दिल दहलता था, डर लगता था, पर अब सिर्फ अपनी बची नजर आती थी। हस्ती हुई, खेलती हुई। शैतान के साथ किया हुआ वो सौदा मुझे अब ज़िंदगी भर निभाना था। और मुझे वो मंजूर था।
Writer(लेखक ) – Shailabh Bansal
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