दिखावा (ShowOff)

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” करते हैं न आप भी ” – दिखावा (ShowOff) ??

दिखावा (ShowOff) – एक ऐसी हिन्दी कहानी है जिसे हम आए दिन अपने आस पास होते देखते हैं। कभी हम खुद ही इसका शिकार हो जाते हैं कभी दूसरों को देखते हैं। पर क्या ये सही है?

हम 21वीं शताब्दी में अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन अपने संस्कारों को खो रहे हैं। आज के तेज रफ्तार वाले युग में होड़ के साथ-साथ दिखावे का भी चलन हो गया है। घर घर में हो रही वास्तविकता बयां करती है ये कहानी हर कोई जो है, उससे ज्यादा दिखना-दिखाना चाहता है। ऐसे में चक्की के दो पाटों के मध्य मध्यम वर्ग आ गया है। क्योंकि धनी लोगों को किसी प्रकार की महंगाई या परेशानी से फर्क नहीं पड़ता, जबकि जो निर्धन व्यक्ति है, आज की दौड़ में कहीं आता ही नहीं है। इस प्रकार आज की दौड़ में सबसे ज्यादा जो पिस रहा है, वह है-मध्यम वर्ग का इंसान। यों तो मध्यम वर्ग को कई कैटेगिरी में बांटा गया है, लेकिन वह अपने आपको समान कैटेगिरी में मानता है। मगर इसमें जो सर्विस क्लास मध्यम वर्ग है, वह जरूर इस रेस से बाहर है। लड़ाई है, तो उस मध्यम वर्ग की, जो बहुत गरीब भी नहीं है और बहुत अमीर भी नहीं है। यानी जिसके पास अनाप-शनाप धन भी नहीं है और रोटी के लाले भी नहीं हैं।

दिखावा (ShowOff) – अब इस मध्यम वर्ग की सबसे बड़ी समस्या है-स्टेटस सिंबल की।

वैसे तो स्टेटस सिंबल आज के दौर में ब्रांड की तरह आंका जाता है। आपके रहन-सहन, पहनावा, यहां तक कि आपकी गाड़ी इसी स्टेटस सिंबल में आती है। यही वजह है कि इस होड़ में मध्यम वर्ग अकारण लुट रहा है या अंदर ही अंदर खोखला हो रहा है। दिखावे की आंधी में हम डूबते जा रहे हैं। दिखावे का चलन इतना बढ़ गया है कि यदि पड़ोसी का बच्चा किसी ऊंचे और महंगे स्कूल में पढ़ता है, तो आपका बच्चा उससे भी अच्छे-महंगे स्कूल में जाना चाहिए। चाहे वह स्कूल, ब्रांड के नाम पर केवल पैसे ही ऐंठ रहा हो। चाहे आपके बच्चे का भविष्य उस स्कूल में इतना अच्छा न बन सकता हो, मगर आपको इस बात की परवाह कहां? आपको परवाह है, तो बस अपने स्टेटस सिंबल की। पहले जमाने में एक दंपति के 5 से 10 बच्चे हुआ करते थे और सभी बच्चे राजकीय स्कूल में पढ़ते थे। मगर जो पढ़ने वाले बच्चे थे, राजकीय स्कूल में भी कामयाब होते थे। तब के 10 बच्चों की पढ़ाई आज के एक बच्चे की पढ़ाई से भी ज्यादा है, क्योंकि तब स्टेटस की होड़ में कोई नहीं था। आज आपके पड़ोसी के यहां बड़ी गाड़ी आती है, तो आपको भी बड़ी गाड़ी चाहिए। आप बड़ी गाड़ी अफोर्ड नहीं कर सकते, मगर पड़ोसी की गाड़ी आपकी आंखों में किरकिरी बनी हुई है। इसीलिए अब चाहे आपको बैंक से लोन लेकर ही बड़ी गाड़ी लेनी पड़े, आप जरूर लेंगे। तभी आपके दिल को ठंडक मिलेगी और पड़ोसी का कलेजा जलेगा। आपने उसका कलेजा जलाने के लिए यह नहीं सोचा कि आप कितने कर्ज के नीचे आ चुके हैं। इसकी परवाह अभी क्यों? दरअसल दिखावे की दौड़ हमारे सेविंग एकाउंट का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो दीमक की तरह हमें दिनो-दिन चाट रहा है और हमारे भविष्य को खोखला करता जा रहा है।

आजकल महिलाओं में किटी पार्टी का चलन हो गया है। जहां देखो, वहां 15-20 महिलाओं ने अपना ग्रुप बना लिया है। वे सप्ताह में एक-दो दिन एक स्थान पर एकत्र होती हैं और एक दूसरे के दिखावे को बढ़ावा देते हुए बुराइयों में लिप्त होती हैं, क्योंकि उनकी निगाह में समय पास करने के लिए इससे उपयुक्त उपाय दूसरा नहीं है। लेकिन वे यह नहीं जानतीं कि इससे अपनी असलियत पर पर्दा डाल रही हैं। वहां नये-नये कपड़े पहनकर जाना और तरह-तरह की ज्वैलरी पहनना- इनका यह दिखावा इनके परिवार पर विपरीत असर डाल रहा है। इन्हें न तो अपने बच्चों की फिक्र है और न ही अपने घर की। बस फिक्र है, तो अपने स्टेटस सिंबल की। जो गृहिणी इस ओर आकर्षित नहीं है या उसके घर में इसकी रजामंदी नहीं है, वह उनकी निगाह में डरपोक या बीसवीं सदी की है। वे जब इन्हें भड़काती या प्रेरित करती हैं, तो इनके मन में यह ख्याल आता है कि वे कितना ऐश कर रही हैं। हम तो बस घर में कुएं के मेढक के समान जीवन जी रहे हैं। मगर जब वे महिलाएं इन गृहिणियों को कभी-कभार अतिथि बनाकर अपनी किटी पार्टी में ले जाती हैं, तो इनकी आंखें खुलती हैं कि यहां क्या है सिवाय गॉसिप, खान-पान या एक-दूसरे की बुराइयों के। तब वे समझदारी से काम लेकर उन महिलाओं से किनारा कर लेती हैं और अपने घर में आकर संतोष की सांस लेती हैं।

दिखावा (ShowOff)
पैसों का दिखावा

लेकिन आजकल धर्म के नाम पर भी यह कार्य बहुत चर्चित है। इसे सत्संग का नाम देकर गुमराह किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सत्संग कोई खराब चीज है, लेकिन यहां उसके मायने बदल गए हैं। महिलाएं इकट्ठी होंगी, एक गुरु महिला दो-चार उपदेश देगी, तत्पश्चात खाने-पीने की सामग्री जो सबने इकट्ठी की है, उसकी दावत होगी।

यों दिखावे के लिए इन महिलाओं ने बॉडी फिटनेस के नाम पर जिम ज्वॉइन कर रखा है। वे घर वालों को दिखाती हैं कि हम घर में परहेजी खाना खाते हैं और जिम भी जाते हैं, फिर भी हमारा वजन कम नहीं हो रहा है। तब उन्हें इनसे बड़ी सिम्पैथी होती है। वे कहते हैं-क्या करे? क्या हवा खाए और पानी पिए । क्योंकि हमारी सोच एक बिंदु पर है, जिसकी हमें आवश्यकता ही नहीं है। अब सुबह की सैर ही देख लें। साहिबा जी गाड़ी निकालेंगी और बराबर वाले पार्क में न जाकर कहीं दूर वाले पार्क में गाड़ी खड़ी करेंगी। फिर चाबी हिलाते हुए ऐसे वॉक करेंगी कि कितने ही लोगों की निगाहें उन पर पड़ेंगी। धीरे-धीरे एक दूसरे की चमक-दमक देखकर ये महिलाएं अपने घर के खर्च इतना बढ़ा लेती हैं कि अच्छी-खासी कमाई भी कम पड़ने लगती है। इसीलिए पतिदेव तनावग्रस्त रहने लगते हैं, क्योंकि वे अपनी बिटिया के भविष्य के लिए जो भी जोड़ते हैं, वह सब इस दिखावे में हवा होने लगता है। वे ब्लडप्रेशर, डायबिटीज या डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। उन्हें पता है कि इस बारे में रोकने पर झगड़ा हो सकता है। फिर झगड़े के बाद उन्हें ही कूल होना पड़ेगा। अगर पत्नी को कूल करना पड़ जाए, तो बड़ा खर्चा भी हो सकता है। ये समस्या अगर ज्वॉइंट फैमिली में है, तो देवरानी और जेठानी में इतनी ईगो हो जाएगी कि दिखावे की वजह से वे लड़ पड़ेंगी।

ऐसे में अंततः संयुक्त परिवार बंट जाता है। दिखावे की यह समस्या केवल महिलाओं में ही नहीं, अपितु पुरुषों में भी है, मगर पुरुष इस समस्या से ग्रस्त होने के बाद अपना रास्ता बदल लेता है। लेकिन कुछ महिलाएं हठी स्वभाव की होने के कारण अपने आपको समाज में किसी भी कीमत पर गिराने को राजी नहीं होतीं।

दिखावा (ShowOff) के उदाहरण एक नहीं, हजारों हैं।

फिर इनसे कैसे छुटकारा पाएं? ये तो आपको चयन करना है कि आपकी पॉकेट मनी क्या एलाऊ कर रही है। आप स्वयं जानते हैं कि आप कितने दायरे में हैं। यहां पति की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह गृहिणी को अपनी सही दशा बताए। बढ़ा-चढ़ाकर या दिखावे से पत्नी को क्या पता चलेगा कि वह गंगा में कितना नीचे डुबकी लगाए। यदि आप अपने दायरे के मुताबिक चादर फैलाएंगे, तो कभी कोई समस्या आपके समक्ष नहीं आएगी। ध्यान रखिए, जब हम दूसरे लोगों को देखकर दिखावे की ओर अग्रसर होते हैं, तो अपना ही नुकसान करते हैं। जब हमें अक्ल आती है, तो देर हो चुकी होती है और हम स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं। यहां हम किसी को कुछ कह भी नहीं सकते, क्योंकि यह राह हमने ही चुनी थी। इसीलिए बाहर के दिखावे से अच्छा है-अंदर से मजबूत बनना। झूठी बड़ाई सुनकर कुप्पा होने से अच्छा है -बड़ाई न सुनना। क्योंकि लोग दाएं जा रहे व्यक्ति को बाईं ओर जाने की सलाह देंगे और बाईं ओर जाने वाले को दाएं जाने को कहेंगे। इंसान का संतुष्ट होना एक सबसे बड़ा गुण है। हमें हर हाल में जो है, उससे संतुष्ट रहना चाहिए। सामने वाला क्या कर रहा है और कहां से धन ला रहा है, हमें उससे क्या लेना-देना। यदि सामने वाले के बच्चे क्लब में शराब पी रहे हैं, लड़कियों के साथ नाच रहे हैं, किसी किस्म के ड्रग्स ले रहे हैं या चोरियां कर रहे हैं, तो क्या हम अपने बच्चों को उनकी दोस्ती में शामिल होने देंगे – हरगिज नहीं।

Eye – Opener Views on दिखावा (ShowOff)

दूसरे शब्दों में यदि हम अच्छे संस्कार मन में रखकर अपनी गृहस्थी को साकार आईना दिखाएं, तो अपने जीवन को हम एक स्वस्थ वायु दे सकेंगे। जब एक जुआरी जुए से हारकर घर लौटता है, तो हम उसे नसीहत देते हैं कि जुए में भी कभी कोई जीता है। वही बात यहां पर लागू होती है। दिखावे से कभी कोई बड़ा हुआ है क्या? अत: अपने हंसते-मुस्कराते परिवार को हम दिखावे की अग्नि में न झोंकें। पॉजिटिव सोच से परिवार को चलाएं, तो जीवन में निखार का रस अपने आप ही टपकने लगेगा, जिसको चखकर हम आनंदमय जीवन बिता सकेंगे।

ताज में घरौंदा चिड़िया का हो, कबूतर का हो या बाज का।

अगर उसमें मुस्कराहट और प्यार, न हो तो वह किस काम का

लेखक – आनंद बंसल

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