दयाशंकर एक धार्मिक प्रवृति का अमीर इंसान था। उसकी दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी पांच साल की आंचल और दूसरी तीन साल की अप्सरा। दोनों प्यार से रहती थीं। दयाशंकर अपनी बेटियों पर जान न्यौछावर करता था। एक दिन घर के आंगन में एक बंदर बेहोश पड़ा था। तभी चोटी बेटी अप्सरा की नजर उस बंदर पर पड़ी। पहले तो वह डरी, मगर धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुंच कर उसे हिलाया, मगर वह टस से मस न हुआ। वह दौड़ी-दौड़ी अपनी बड़ी बहन आंचल को बुला लाई। आंचल ने उसके मुंह पर पानी के छींटे दिए और उसके निकट खाने को दो केले रख दिए। मुंह पर छींटे पड़ने से बंदर को होश आया। मगर अभी उसमें उठने की ताकत नहीं थी। अप्सरा शायद बंदर के मन का भाव जान गई। उसने केले उठाए और छीलकर बंदर के मुंह की ओर बढ़ा दिए। बंदर ने मुंह खोला और केला खाना शुरू कर दिया। तभी अप्सरा बोली, “दीदी-दीदी देखो बंदर रो रहा है। आंचल ने देखा, बंदर दर्द से कराह रहा था। उसका ध्यान उसकी एक टांग पर गया, जिससे खून निकल रहा था। वह दौड़कर फस्ट एड बॉक्स ले आई और उसने बंदर का घाव साफ करके उस पर दवाई लगाकर पट्टी बांध दी। इसी बीच अप्सरा अंदर से और केले लाकर बंदर को खिलाती रही। एक-डेढ़ घंटे की मेहनत के बाद बंदर संभल गया और तीन टांगों पर खड़ा हो गया। बच्चों की निःस्वार्थ सेवा से बंदर प्रसन्न हो गय और उसके मन में उन दोनों बच्चियों के लिए प्यार उमड़ आया। उसने प्रण किया कि वह दोनों बच्चियों का सदा ख्याल रखेगा।
कुछ ही दिनो में वह बंदर दोनों बच्चियों का सच्चा दोस्त बन गया। दोनों बच्चियों ने उसका नाम कुश रखा। अचानक कुछ दिनों के बाद अप्सरा और आंचल की मां का स्वर्गवास हो गया। बेचारी बिन मां की बच्चियाँ दुखी रहने लागि। दयाशंकर उन दोनों के लिए चिंतित रहने लगा और उसने बच्चियों के पालन-पोषण के लिए दूसरी शादी कर ली। शुरू में तो सौतेली मां मेनका उन्हें बहुत अच्छी तरह रखती थी, मगर जब वह खुद गर्भवती हो गई तो उसके स्वभाव में बदलाव आना शुरू हो गया। ऐसे में कुश उन दोनों बहनों को देखकर बहुत दुखी होता था। वो जब भी देखता, कभी दोनों बहने भूखी-प्यासी सोई दिखती, तो कभी मेनका जब मर्जी उनकी पिटाई कर देती! दयाशंकर मेनका से कहता भी था कि मेरी बच्चियों पर अत्याचार न करो, मगर अब मेनका दयाशंकर के आगे झूठ-मूठ अच्छी बन जाया करती थी। ये सब देख कर बंदर कुश के मन में एक उपाय सूझा। कुश थोड़ी दूर रह रहे मुनि के आश्रम में पहुंचा। मुनिवर जानवरों की बातें काफी हद तक समझते थे। इसीलिए कुश ने मुनि को अपने मन की सारी बातें बता दीं और कहा कि मुझे हर हाल में इन बच्चों की मदद करनी है। मुनि ने कुश के कान में कुछ कहा और कुटिया में चले गए। कुश सुबह मेनका के घर की छत पर बैठ गया। मेनका जब कपड़े सुखाने छत पर आई तो लंगड़े बंदर को देखकर डर गई और डर से चीखती हुई सीढ़ियों की ओर भागी, जिससे मेनका का पैर फिसल गया और उसका गर्भपात हो गया। मेनका उस लंगड़े बंदर यानि कुश की दुश्मन बन गई। वह जहां भी कुश को देखती, देखते ही उसे मारने दौड़ती मगर कुश कहां हाथ आने वाला था। समय बीता, मेनका फिर गर्भवती हुई और फिर कुश की वजह से उसका गर्भपात हुआ। इस प्रकार तीन बार गर्भपात होने से मेनका दुखी हो गई। उसने दयाशंकर से कहा “इस लंगड़े बंदर को पकड़वा क्यों नहीं देते। यह तो मेरे होने वाले बच्चे की जान का दुश्मन बन गया है”।
दयाशंकर कहता है “इसमें बंदर का क्या दोष-यह न तुम्हे देखकर गुर्राता है, न तुम्हारे पीछे भागता है। हां, तुम ही उससे डरके भागती हो। हमें और बच्चों का क्या करना है, तुम इन्हीं को प्यार से पालो शायद भगवान की भी येही मर्जी है तभी तुम्हें ग्राभपात हो रहे हैं। और मैंने तुझसे शादी भी इनके पालन-पोषण के लिए की थी।
मेनका ने कहा “आपकी बात ठीक है, मगर मैं एक पुत्र भी चाहती हूं।
दयाशंकर ने कहा, “मैं कोई उपाय सोचता हूं। मैं मुनिवर से सलाह करके तुम्हें बताता हूं।
दयाशंकर उसी मुनि के पास गया। दयाशंकर ने उन्हे अपनी व्यथा सुनाई। मुनि समझ गए कि दयाशंकर की पत्नी वही मेनका है, जिसका जिक्र कुश ने किया था। ऊनहे सारा किस्सा पहले से ही मालूम था इसीलिए उन्होंने ने दयाशंकर से कहा, “तुम अब घर जाओ। मैं तीन दिन बाद तुम्हारे घर आकर तुम्हारी पत्नी से मिलूंगा और वहीं उचित उपाय तुम दोनों को बताऊंगा। ठीक तीन दिन बाद मुनि जी उनके घर पहुंचे। उन्होंने अप्सरा और आंचल को देखा। मुनि उन बच्चों से बहुत प्रभावित हुए। इतने में दयाशंकर भी आ गया। “अरे मुनिवर आइए, हम आपका ही इंतजार कर रहे थे। मुनि ने कहा ”मुझे अपनी पत्नी से मिलवाओ।“ मेनका मुनि को प्रणाम करके एक तरफ बैठ गई। मुनि ने मेनका को देखकर कहा, देखो बेटी, स्त्री के अंदर अगर प्यार की भावना नहीं होती तो प्रभू भी उस पर दया नहीं करते। तुम अप्सरा और आंचल को जब तक अपनी ममता की गोद में नहीं लोगी, तब तक तुम्हारे मन की इच्छा पूर्ण नहीं हो सकेगी और हां दयाशंकर जी, इस बार जब मेनका गर्भवती हो तो इसे पहले तीन महीने और आखिरी का एक महीना मेरे आश्रम में रहना होगा, ताकि उसकी हिफाजत ठीक ढंग से हो। थोड़ा जलपान ग्रहण करने के बाद मुनि ने मेनका से फिर कहा, बेटी, इन बच्चियों का ध्यान रखना तुम्हारा कर्तव्य है। इनके आंसू तुम्हारे लिए अभिशाप बन सकते हैं। इसलिए उन्हें दुतकारना या मारना उचित नहीं है। इस तरह मुनि मेनका को समझाकर लौट आए। एक दिन मेनका के घर पे न होते हुए उसने bachchion को बुलाकर पूछा, “बेटा, नई मां तुम्हे प्यार करती है या नहीं।“ दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर रो पड़ीं और दयाशंकर से लिपट गईं। दयाशंकर को मेनका पर बड़ा क्रोध आया। उसने मेनका को बुलाकर पूछा, क्या तुम इन बच्चों से प्यार नहीं करती?
मेनका बोली, “यह कौन कह रहा है तुमसे?
अरे कहने की बात क्या है इसमें, तुमने सुना नहीं मुनिवर क्या कह रहे थे?
मेनका कहती है, “हां, यह ठीक है, मैं प्यार नहीं करती, मगर नफरत भी नहीं करती। अब जब मुनिवर ने कहा है तो मैं कोशिश करूंगी इन्हें अच्छी तरह से रखने की।“
मेनका अब बच्चों को मारती-पीटती नहीं थी, खाना-पीना भी दे दिया करती थी, मगर प्यार नहीं कर पाई। अप्सरा और आंचल, के लिए इतना ही बहुत था कि उन पर अत्याचार होना बंद हो चुका था। दो वर्ष बाद मेनका ने दयाशंकर को फिर खुशखबरी सुनाई कि वह अब गर्भ से है। दयाशंकर कोई बहुत खुश तो नहीं हुआ, मगर चिंतित जरूर हुआ कि अब मेनका को तीन महीने आश्रम में रहना होगा तो खाना-पीना घर में कैसे होगा, मगर मुनि की बात टाली भी नहीं जा सकती थी। दयाशंकर मेनका को मुनि के पास ले जाने को तैयार हुआ तो अप्सरा और आंचल भागती हुई मेनका से लिपट गईं, बोलीं, मां न जाओ। मेनका का दिल हल्का-सा तो ममता भरा हुआ, मगर दूसरे ही पल अपने बच्चे का ध्यान में आते ही, वह तुरंत गाड़ी में बैठ गई।
समय बीता, नौ महीने बाद मेनका ने एक लड़के को जन्म दिया। मेनका की खुशी का ठिकाना न रहा, दयाशंकर भी पुत्र प्राप्ति पर प्रसन्न हुआ। होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। सुबह सवेरे जब मेनका शौच को गई तो एक लंगडा बंदर उसके बच्चे को उठाकर भागने लगा। मेनका ने देखा तो वह भी उसके पीछे भागी। शोर मचाने लगी कि देखो मेरा बच्चा वह लंगड़ा बंदर उठाए जा रहा है, मगर वहां जंगल में उसकी कौन सुनता, बंदर पेड़ों पर छलांग लगाता हुआ गायब हो गया और वह पागलों की तरह बिलखती हुई मुनि के आश्रम में पहुंची। मुनि उस समय समाधि लगाए बैठे हुए थे। उन्होंने उसके विलाप की आवाज सुनकर कहा, क्या बात है मेनका, क्यों रो रही हो? मुनिवर! अनर्थ हो गया। कोई लंगड़ा बंदर मेरे बच्चे को उठा ले गया। यह वही बंदर था, जिसकी वजह से हमेशा मेरा गर्भपात होता रहा। आज जब सब कुछ ठीक हो गया तो वह मेरा बच्चा ही उठा ले गया। मुनिवर मुझे मेरा बच्चा वापस चाहिए। इतना कहकर मेनका मुनि के चरणो में मूर्च्छित हो गई। मुनि ने उसे मूर्छा से बाहर निकाला और कहा कि देखो मेनका, प्रभू की लीला के समक्ष हम सब बेबस हैं। अब जो कुछ हुआ, उसे प्रभू के ऊपर छोड़ अपने घर जाओ। मैं तुमसे वादा करता हूं कि एक दिन तुम्हारे बच्चे को मैं तुम्हारे पास अवश्य लेकर आऊंगा। बस तुम भी मुझसे एक वादा करो कि तुम अपने बच्चे के बारे में जानकारी लेने मेरे आश्रम में अब नहीं आओगी और प्रभू पर विश्वास रख अपनी गृहस्थी का कर्तव्य पूरा करोगी।
दयाशंकर मेनका को घर ले आया। मेनका के मन में कुछ दिन तक तो बच्चे के न होने का गम रहा, मगर धीरे-धीरे उसकी ममता अप्सरा और आंचल की ओर बढ़ने लगी। उन्हें हमेशा अपनी आंखों के सामने रखना चाहती थी। एक बच्चे के खोने से शायद उसे मालूम चल गया था कि बच्चे का क्या महत्व होता है। मेनका का इस तरह बदलना बच्चों के लिए सुख का सागर हो गया। समय अपने हिसाब से चलता रहता है। अब आंचल और अप्सरा जवानी के पायदान पर खड़ी थीं।
अभी सुबह की भोर में सूरज की किरणें फूटी भी नहीं थीं कि मुनिवर की दस्तक हुई। मुनि ने दयाशंकर को आवाज लगाई। मुनि की वाणी सुनकर पूरा परिवार जाग गया और सभी दौड़-दौड़े मुनिवर के पास आ गए। मुनि बोले, मेनका हम वादे के मुताबिक तुम्हें तुम्हारा बेटा देने आए हैं, जो अब दस वर्ष का हो गया है और गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त कर चुका है। क्या तुम बेटे के मिलने के लिए व्याकुल नहीं हो? मेनका कहती है, मुनिवर ! मैंने अपना सारा प्यार इन दोनों पर न्योछावर कर दिया है, मेरे लिए तो अब इनसे ऊपर कोई नहीं। तभी लंगड़े बंदर को मेनका एक पेड़ पर देखकर चीख पड़ी-देखो वही लंगड़ा बंदर आज फिर आ गया है। उसने तुरंत अप्सरा और आंचल को अपनी बाहों में भर लिया और कहा, आओ बच्चो! मेरे आंचल में छुप जाओ, कहीं यह बंदर तुम्हें काट न ले। मुनि ने मेनका की ममता को देख कहा “, मेनका आज तुम वाकई अपने बेटे को सीने से लगाने की हकदार हो। आओ कल्याण और मिलो अपने परिवार से। कल्याण यानी मेनका का खोया हुआ बेटा आगे बढ़कर माता-पिता के पैर छूकर अपनी बहनों को स्नेह से गले लगाता है और लंगड़ा बंदर ऊपर से ताली बजाता हुआ फूलों की बारिश करता है।
मेनका तुमने प्रारंभ में अपने पराए का फर्क किया तो तुम्हें सिर्फ एक लंगड़े बंदर ने ही ऐसा दंडित किया कि तुम अपनी औलाद के लिए तरस गई और जब नौ महीने कोख में रखने के बाद तुमने इस बच्चे को जन्म दिया तो तुम्हारी ममता जाग्रत हो गई।
अपना बच्चा खो जाने पर तुम्हें बच्चे की ही आवश्यकता थी, तुमने अप्सरा और आंचल को जब उस ममता भरी नजरों से देखा, तो इनमें तुम्हें वही प्यार नजर आया, जिसकी तुम्हें चाहत थी। ऐसे में अगर तुम्हें तुम्हारा बेटा पहले दिन ही मिल जाता तो इन दोनों बच्चियों की जिंदगी नरक बन जाती। इसीलिए इन दोनों की जिंदगी खुशहाल करने के लिए इस लंगड़े बंदर ने मेरे साथ मिलकर यह योजना बनाई और हम इस योजना में कामयाब हुए। अब तुम्हारी ममता सिर्फ कल्याण में ही नहीं, अप्सरा और आंचल में भी उतनी ही रहेगी।
देखा बच्चो! निःस्वार्थ सेवा का असर। पशु-पक्षियों में भी हमारी तरह ही प्राण बसे हैं। उन्हें अगर हम प्यार दें तो वे भी हमसे प्यार करने लगते हैं और हमारी खुशी के लिए वे हर संभव प्रयत्न करते हैं, क्योंकि उनमें मानव की तरह ईर्ष्या-द्वेष की भावना नहीं होती। तभी तो मनुष्य उन्हें झूठा प्यार जताकर बंदी बना लेता है, मगर जब सच्चा प्यार उन्हें हमारा मिल जाए तो वे आपकी खुशी के लिए अपनी जान भी न्यौछावर कर देते हैं।