Crime Story – Ghadi ki khooni sui

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मशहूर घड़ीसाज लखनपाल घड़ी की मरम्मत करने में बड़ा उस्ताद था। कैसी भी बिगड़ी घड़ी हो, वह उसे चुटकियों में ठीक कर देता था। उसके दूर-दूर से घड़ी ठीक होने के लिए आती थी। बलिया गांव में सेठ बनवारी लाल घड़ियों का बहुत शौकीन था। उसने अपनी हवेली में सैकड़ों घड़ियां लगा रखी थीं। उनमें से एक घड़ी उसके बुजुर्गों की थी, जो बहुत बड़ी दीवार घड़ी थी। सेठ जी को उस घड़ी से बहुत लगाव था। Deshishy वह घड़ी हर घंटे बाद ‘टन-टन’ बोलती थी। उसका नीचे का डंडा (पेंडुलम) दाएं-बाएं जाते समय बहुत सुंदर लगता था। उस घड़ी की बड़ी सुई इतनी बड़ी थी, जैसे कोई तलवार हो। अचानक एक दिन वह घड़ी खराब हो गई। सेठ जी बड़े उदास हो गए। उन्होंने उसे खूब हिलाया – डुलाया, मगर सब बेकार गया। उसने तो जैसे अब न चलने की कसम खा ली थी। डी गुडी’ भी तभी सेठ जी के दामाद प्रमोद ने उन्हें घड़ीसाज लखनपाल के बारे में बताया। सेठ जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्होंने तुरंत लखनपाल को फोन मिलाया और कहा, “मेरे पास मेरे पुरखों की एक बहुत बड़ी घड़ी है। वह खराब हो गई है है। मैं उसे लेकर आपके पास नहीं आ सकता। क्या आप यहां आ सकते हैं?” लखनपाल ने कहा, “नहीं सर, मेरे पास फुर्सत नहीं है और आपके पास गांव आने-जाने में मुझे चार घंटे लग जाएंगे। अतः मैं माफी चाहूंगा।” आर सेठ जी बोले, “मैं तुम्हारे लिए गाड़ी भेज दूंगा। गाड़ी तुम्हें ले आएगी और बाद में छोड़ जाएगी। जो आपकी फीस है, उससे 10 गुनी ज्यादा मैं आपको फीस दूंगा।” 0 लखनपाल ने कहा, “मैं घड़ी की मरम्मत का काम पैसों के लिए नहीं करता। यह तो मेरा शौक है। पैसे तो मुझे दुकान पर ही मुंहमांगे मिल जाते हैं।” सेठ जी उदास हो गए। मगर एक-दो दिन बाद वह दुबारा लखनपाल को फोन लगा बैहे। बोले, “भाई, क्यों जिद पर अड़े हो। एक व्यक्ति ही दूसरे व्यक्ति के काम आता है।’ लखनपाल ने कहा, अच्छा यह बताएं कि क्या आपकी घडी के ऊपरी

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हिस्से की कोई आकृति टूटी हुई है और उस आकृति के नीचे क्या लिखा है?” सेठ जी बोले, “ऊपर की आकृति किसी पक्षी की है, जो टूटी हुई है और उसके नीचे ‘सत्यम’ लिखा है। लखनपाल ने कहा, “ठीक है, मैं वह घड़ी अवश्य ठीक करूंगा। लेकिन मैं रुपयों के बजाय उस घड़ी के अतिरिक्त कोई भी पांच घड़ी लूंगा।” सेठ जी बोले, “मुझे मंजूर है। बताइए, कब आइएगा?” लखनपाल ने कहा, “जब आप गाड़ी भेजेंगे, मैं तुरंत आ जाऊंगा।” मैं सेठ जी बोले, “मैं अभी गाड़ी भेज रहा हूं।” लखनपाल बोला, “ठीक है। ” लखनपाल सेठ जी की गाड़ी से उनके घर पहुंचा और थोड़ी ही देर में उस घड़ी को ठीक कर दिया। इसके अलावा घड़ी की जो आकृति टूटी हुई थी, , उसे भी लगा दिया। वह आकृति एक उल्लू की थी। सेठ जी अत्यंत प्रसन्न हुए। लखनपाल ने सेठ जी की टूटी-फूटी पुरानी घड़ियों में से पांच घड़ियां ले लीं। नी कौन सेठ जी ने सोचा- मेरे लिए तो ये घड़ियां टूटी-फूटी थीं। इनके बदले में मेरी पुरखों की घड़ी ठीक हो गई। लखनपाल ने कहा, “सेठ जी, अब तो आप प्रसन्न हैं। मैंने सारा काम कर दिया है। ” डी जी ना। सेठ जी बोले, “हां, मगर तुम्हारे पास यह आकृति आई कहां से?” लखनपाल ने कहा, “सेठ जी, पुरानी नसों को दबाने से दर्द होता है। अतः आप उन बातों में न जाएं, तो ही अच्छा है। मेरी इच्छा है कि जिस तरह यह घड़ी आपको अपनी जान से भी ज्यादा प्रिय है, उसी तरह यह भविष्य में भी प्रिय बनी रहे। अच्छा सेठ जी, अब मैं चलता हूं। अगर कभी दुबारा मेरी जरूरत पड़े, तो याद कर लेना। वैसे अब यह घड़ी खराब नहीं होगी । ” ना। या चला गया तथा रात के 12 बजे सेठ जी ने घड़ी देखी। उन्हें लगा कि उल्लू की आंखें चल रही हैं और पंख थोड़े उठ गए हैं, जैसे वह कुछ बोल रहा हो। यह दृश्य देखकर सेठ जी के शरीर में कंपन पैदा हो गया। उल्लू के शब्द उनकी समझ में नहीं आए। बस एक शब्द समझ में आया-‘मरेगा।’ सेठ जी करवट लेकर सोना चाहते थे, मगर उनकी आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। आगे बढ़ना कौन बेचना शुरू कर दिया। पहली घडी उसने शहर के एक लाला को बेची। लाला उधर लखनपाल ने सेठ जी द्वारा दी गई घड़ियों की मरम्मत करके उन्हें ने वह घडी दीवार पर टांग दी और सबसे कहने लगा, “दो सौ साल पुरानी ऍटिक घड़ी है।” कौन टी ठीक तीन दिन बाद लाला का अपने ही घर में खून हो गया। पोस्टमार्टम की

रिपोर्ट से मालूम हुआ कि एक नुकीली चीज लाला के पेट में घोंपी गई थी और एक छोटी सी नुकीली चीज उनकी कनपटी में। जिस रात लाला का खून हुआ था, उस रात सेठ जी की हालत डर के कारण खराब हो रही थी, क्योंकि उनकी घड़ी की बड़ी सुई लापता थी। केवल छोटी सुई चल रही थी। मगर कुछ घंटे बाद जब सेठ जी ने देखा, तो बड़ी सुई अपने स्थान पर थी। तभी उल्लू कुछ बोला, लेकिन उसकी जो आवाज उनके समझ में आई, वह थी- ‘काम हो गया।’ सेठ जी निश्चल मुद्रा में अपने बिस्तर पर पड़े रहे। पूरी रात उन्होंने डरकर गुजारी। सुबह जब उन्होंने अखबार पढ़ा, तो ज्ञात हुआ कि लाला जी का खून हो गया है। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि लाला जी जैसे नेक और ईमानदार व्यक्ति का दुश्मन भला कौन हो सकता है। वह उनके गांव शोक मनाने के लिए गए। वहां उन्होंने देखा कि लाला जी के कक्ष की दीवार पर वही घड़ी टंगी है, जो उनसे घड़ीसाज लखनपाल ले गया था। उन्हें बड़ी हैरानी हुई, लेकिन वह चुप्पी साधे वहां से लौट आए। फिर लखनपाल ने दूसरी घड़ी चंपत लाल बर्तन वाले को बेची। ठीक उसी तरह तीन दिन बाद चंपत लाल का भी खून हो गया। चंपत लाल के खून वाली रात को भी सेठ जी के साथ वही घटना घटी, जो लाला जी के घटी थी। उल्लू ने आवाज लगाई-‘लो, फिर काम हो गया।’ ‘खून के वक्त सेठ जी चंपत लाल की शोक सभा में गए। वहां भी उन्होंने अपनी दूसरी घड़ी देखी, जो लखनपाल को दी थी। अब सेठ जी के मन में शक पैदा हो गया। उन्हें लगा कि ये खून उन घड़ियों के कारण ही हो रहे हैं। लखनपाल कोई जादूगर लगता है, तभी तो उसने रुपयों के बजाय मुझसे ये घड़ियां ली थीं। सेठ जी मुश्किल में पड़ गए, क्योंकि वे घड़ियां उनके यहां की थीं। तीसरी घड़ी लखनपाल ने शंकर मिठाई वाले को बेची। वहां भी पिछली दो घटनाओं की तरह घटना हुई। सेठ जी ने वहां भी अपनी घड़ी देखी। अब तो उन्हें यकीन हो गया कि घड़ी का ही खून से कोई संबंध है। तभी उन्हें ध्यान आया कि लखनपाल मुझसे पांच घड़ियां ले गया था। इसका मतलब दो घड़ियां अभी बिकनी शेष हैं, अत: दो लोगों की जानें बचाई जा सकती हैं। मगर कैसे? अगर वह पुलिस को बताते हैं, तो स्वयं लपेट में आ सकते हैं। फिर लखनपाल को घड़ी बेचने से कैसे रोक सकते हैं। मगर वह दिल पर पत्थर रखकर लखनपाल के पास गए। लखनपाल ने पूछा,“कहिए सेठ जी, कैसे आना हुआ? सब खैरियत तो है ना! घड़ी का उल्लू ज्यादा तंग तो नहीं करता।’

सेठ जी ने कहा, “यार, उस उल्लू ने तो मेरी नींद उड़ा दी है। जाने क्या-क्या बोलता रहता है और अपनी आंखें भी छलकाता है। तुम उल्लू को उस घड़ी से निकाल दो।” 44 लखनपाल ने कहा, “सेठ जी, उस घड़ी की जान वह उल्लू ही है। अगर उसे निकाल दिया गया, तो घड़ी फिर बिगड़ जाएगी।” सेठ जी बोले, “अच्छा, ये बताओ कि तुमने बाकी दो घड़ियां किसे बेची हैं?” लखनपाल ने सोचते हुए कहा, “एक घड़ी तो आपकी पत्नी सेठानी जी खरीद ले गई हैं और दूसरी घड़ी आपका दामाद प्रमोद ले गया है।” सेठ जी क्रोधित होकर बोले, “अरे, यह क्या किया तूने दुष्ट? मेरे ही घर मौत का सामान भेज दिया।” लखनपाल हंसकर बोला, “मौत का सामान तो आपके घर पहले से ही था। हां, वह अपना काम करना भूल गए थे। बस मैंने उन्हें वह याद दिला दिया। यह उसी का अंजाम है। इस कार्य का मैं वर्षों से इंतजार कर रहा था। सेठ जी, मैं इंजीनियर होते हुए भी एक घड़ीसाज बना, तो क्या मैं पैसों के लिए ये सब कर रहा हूं। नहीं सेठ जी, नहीं। यह तो हमारे पूर्वजों का शाप है, जिसे कोई पूर्ण न कर सका। मैं तो अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ये सब करने पर मजबूर हूं।” सेठ जी बोले, “किसी को कुछ याद नहीं। पूर्वज तो स्वर्ग सिधार गए और अपने साथ अपनी दुश्मनी भी ले गए। अब तो सब सुनी-सुनाई बातें हैं, जो न तो तुमने देखी हैं और न ही मैंने। अब उन बातों से इस जीवन को नष्ट करने से क्या लाभ। देखो लखनपाल, तुम जो भी कर रहे हो, उसका अंजाम अच्छी तरह जानते हो। हां, अगर तुम मेरे परिवार को बख्श दो, तो मैं तुम्हारा यह भेद किसी को नहीं बताऊंगा। तुम्हें पुलिस के चंगुल में भी फंसने नहीं दूंगा। लेकिन अगर तुम अपनी जिद पर अड़े रहे, तो मैं तुम्हें फांसी के फंदे पर लटकवाकर ही दम लूंगा।” | देगा। मैंने तो केवल उन घड़ियों की आत्माओं को एक्टिव किया है, जो हमारे लखनपाल ने सोचा- मैंने ऐसा क्या किया, जो यह मुझे फांसी पर लटकवा पूर्वजों की थीं। अब परदे के पीछे क्या हो रहा है-मुझे क्या पता? चलो छोड़ो, मुझे तो लगता है कि यह सेठ सठिया गया है या अपनी घड़ी के उल्लू के एक्टिव होने से काफी डर गया है। इधर सेठ जी ने अपनी पत्नी द्वारा लाई घड़ी को अपने घर की नौकरानी के

कमरे में लटका दिया, जबकि दामाद के घर जाकर उस घड़ी को उठा लाया और अपने घर की एक कोठरी में रखकर ताला बंद कर दिया। वह देखना चाहते थे कि वाकई जिस कमरे में लखनपाल द्वारा एक्टिव की गई घड़ी है, वहां किसी का खून तीसरे दिन होता है या नहीं। सेठ जी ने सोचा-एक घड़ी तो मैंने छिपा दी है और दूसरी घड़ी घर की नौकरानी के कमरे में लगा दी है। अब देखना है कि नौकरानी का खून होता है या नहीं और दूसरी घड़ी, जो कोठरी में बंद है, उसका क्या होता है? अगले दिन रात्रिकाल सेठानी सेठ जी के पास सो रही थीं, परंतु सेठ जी को नींद नहीं आ रही थी। उन्होंने उस उल्लू की तरफ देखा, तो उन्हें लगा कि जैसे उल्लू कह रहा हो-काम होने वाला है। तभी सेठ जी ने देखा कि घड़ी की बड़ी सुई गायब है। वह घबराकर उठ बैठे और नौकरानी के कमरे की ओर गए । सेठ जी वहां यह देखकर दंग रह गए, जब उनकी घड़ी की बड़ी सुई नौकरानी के पेट में घुस गई। फिर नौकरानी के कमरे की घड़ी की छोटी सुई नौकरानी की कनपटी में जा घुसी। तत्पश्चात एक हाथ आया। पहले उसने नौकरानी की कनपटी में धंसी छोटी सुई निकालकर उस घड़ी में लगा दी और बड़ी सुई लेकर सेठ जी के कक्ष की ओर चला गया। सेठ जी तत्काल वहां पहुंचे। उस हाथ ने बड़ी सुई को सेठ जी की घड़ी में लगा दिया। तभी सेठ जी को एक आकृति दिखाई दी और उल्लू बोल पड़ा – ‘काम हो गया । ‘ सेठ जी उस आकृति की ओर लपके, लेकिन वह आकृति दीवार फलांग कर गायब हो गई। सेठ जी एक तो बुजुर्ग और दूसरे शरीर से मोटे-वह उसका पीछा नहीं कर पाए। मगर जब उस आकृति ने ऊपर को छलांग लगाई थी, तो उसके गले का लॉकेट वहीं गिर पड़ा था। सेठ जी ने उस लॉकेट को उठाकर देखा, तो भौचक रह गए। क्योंकि वह लॉकेट उनके दामाद प्रमोद का था। सेठ जी अभी इस उलझन से उबर भी नहीं पाए थे कि उनका दामाद प्रमोद उनके घर आया और बोला, “अंकल, अभी थोड़ी देर पहले एक चोर मेरे गले का लॉकेट चुराकर आपकी कोठी की ओर आया था। कहीं वह लॉकेट यहां तो नहीं फेंक गया?” सेठ जी बोले, “हां प्रमोद, वह तुम्हारा लॉकेट यहीं फेंक गया है। ” प्रमोद बोला, “मैं तो घबरा गया था। ” फिर सेठ जी ने प्रमोद का लॉकेट उसे वापस कर दिया और डरते-डरते कहा, “एक बदमाश घर में घुसा था। वह नौकरानी को सेठानी समझकर मार गया है।”

प्रमोद ने पूछा, “आपको कैसे मालूम हुआ?” सेठ जी बोले, “मैंने उसे अपनी आंखों से देखा है। आओ, अंदर चलो। तुम्हें दिखाता हूं।” दोनों नौकरानी के कमरे में गए। प्रकाश करते ही उनकी आंखें फटी रह गईं। पलंग पर नौकरानी खून से लथपथ पड़ी थी। प्रमोद ने कहा, “जब वह खूनी आपके सामने अंदर आया था, तो आपने उसे पहचाना तो होगा?” सेठ जी इंकार में सिर हिलाते हुए बोले, “नहीं, उसने ऊपर से नीचे तक एक काला नकाब पहन रखा था। हां, उसका हाथ जरूर मैंने देखा था।” प्रमोद बोला, “अगर वह आपके सामने आ जाए, तो आप उसे पहचान लेंगे?” सेठ जी ने कहा, “नहीं, मैं उसे कैसे पहचान सकता हूं।’ ” तत्पश्चात प्रमोद के कहने पर सेठ जी ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस ने अपनी कार्यवाही पूरी करने के बाद केस सी.बी.आई. को सौंप दिया। सी.बी.आई. का इंस्पेक्टर कुंदे बहुत चतुर और ईमानदार था। उसने पूरा केस समझने के बाद सेठ जी से पूछा, “माना कि आपने उसका चेहरा नहीं देखा, मगर उसकी कद-काठी तो जरूर देखी होगी। ” सेठ जी बोले, “हां, कद-काठी में वह जवान दिखता था यही कोई 35-36 वर्ष का आदमी । यों कह लें कि जैसे हमारे दामाद प्रमोद हैं। ” इंस्पेक्टर कुंदे ने प्रमोद से पूछा, “इतनी रात में आपका लॉकेट कोई चोर आपके सोते समय गले से उतारकर भागा था या आप कहीं सड़क पर चहल-कदमी कर रहे थे और वह लॉकेट छीनकर भाग गया?” प्रमोद ने कहा, “सर, मैं सो रहा था। मैं लॉकेट को उतारकर अपने बगल में रखकर सोता हूं। मैंने जब कमरे में आहट सुनी, तो देखा कि एक आदमी मेरा लॉकेट उठाकर कमरे से बाहर जा रहा है। बस, मैं भी उसके पीछे हो लिया। भागते-भागते वह चोर अंकल की कोठी की ओर आया और गायब हो गया। मैं उसको यहां-वहां देखता रहा। थोड़ी देर बाद जब मैंने उसी व्यक्ति को दूसरी मैंने अंकल से उस लॉकेट के बारे में पूछा, तो इन्होंने मुझे लॉकेट देते हुए कहा तरफ से कूदते देखा, तो मैं उसकी ओर लपका। मगर वह भाग निकला। तब , द नहीं मैं कि चोर के कूदते समय यह लॉकेट यहीं गिर गया था।” इंस्पेक्टर कुंदे ने पूछा, “जब तुम घर में सो रहे थे, तब तुम्हारे साथ और कौन सो रहा था?”

प्रमोद ने उत्तर में कहा, “सर, मेरी पत्नी और एक छोटा बच्चा।” इंस्पेक्टर कुंदे बोला, “तब तो तुम्हारी पत्नी को यह मालूम होगा कि तुम ‘चोर के पीछे भागे थे।” प्रमोद बोला, “हां, हो सकता है।” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “कमाल है। इतना शोर-गुल होने पर भी तुम कह रहे हो कि हो सकता है।” प्रमोद बोला, “सर, वह आजकल नींद की गोली लेकर सोती है, तो हो सकता है कि उसकी नींद न टूटी हो।” इंस्पेक्टर कुंदे ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा, “अब यह बताओ कि चोर ताला तोड़कर आया था या आप ताला लगाना भूल गए थे।” प्रमोद ने कहा,“सर, चोर दीवार फांदकर आया था और कमरे में ताला नहीं लगा था।” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “चोर के पीछे आप भी दीवार फांदकर गए थे?” प्रमोद ने तत्काल उत्तर दिया, “जी सर।” इंस्पेक्टर कुंदे ने फिर सेठ जी से पूछा, “अब आप बताएं कि आपने क्या देखा?” सेठ जी ने जो देखा था, वो सही-सही इंस्पेक्टर कुंदे को बता दिया। सेठ जी की सारी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर कुंदे ने सेठ जी के कमरे में लगी घड़ी का दरवाजा खोला और उसमें से बड़ी सुई बाहर निकाली। फिर दुबारा लगाकर देखा। तभी घड़ी का उल्लू बोल पड़ा-‘काम हो गया।’ इंस्पेक्टर कुंदे ने बड़ी सुई दुबारा बाहर निकाल ली। फिर वह नौकरानी के कमरे में गया। वहां की घड़ी से उसने छोटी सुई निकाली और दोनों सुइयों को जांच के लिए लैब में भेज दिया। तभी सेठ जी बोले, “सर, मेरी घड़ी काफी दिनों से खराब थी, जिसे ठीक करने वाला कोई नहीं था। तभी मेरे दामाद प्रमोद ने एक घड़ीसाज लखनपाल का नाम सुझाया। लखनपाल ने ही यह घड़ी ठीक की थी और इसके ऊपर जो उल्लू बना हुआ है, यह पहले टूटा हुआ था। लखनपाल के पास इसका दूसरा पीस था, जो उसने मेरे बिना कहे जोड़ दिया था। तभी से यह उल्लू रात में बोलता है। मैं एक अन्य बात कहना चाहता हूं इंस्पेक्टर साहब। लखनपाल ने घड़ी ठीक करने के बदले मुझसे रुपये न लेकर मेरे यहां से पुरानी पांच घड़ी मेहनताने के रूप में ली थी। मुझे आश्चर्य इस बात का है कि जिन-जिन घरों में ये घड़ियां बेची गई, उन-उन घरों में ही खून हुआ है।”

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इंस्पेक्टर कुंदे ने आश्चर्य से कहा, “यह तो बड़ी अजीब बात है, मगर पांचवीं घड़ी कहां गई?” सेठ जी जान-बूझकर चुप रहे और प्रमोद ने भी कुछ नहीं कहा। इंस्पेक्टर कुंदे सेठ जी और प्रमोद को अपने साथ लेकर घड़ीसाज लखनपाल की दुकान पर गया। उससे बातचीत के दौरान उसे मालूम हुआ कि लखनपाल कुछ मंदबुद्धि का इंसान है। यह बात दूसरी है कि वह पुरानी घड़ियों को ठीक करने में मास्टर है। उसने लखनपाल से पूछा, “टूटे हुए उल्लू का दूसरा समूचा पीस तुम्हारे पास कहां से आया?” लखनपाल ने कहा, “यह हमारे पूर्वजों की घड़ी थी। मेरे दादा घड़ियों के बहुत शौकीन थे, मगर सेठ जी ने मेरे पिता जी से बेईमानी करके उनकी घड़ियां छीन लीं। जहां तक उल्लू की बात है, तो टूटे हुए उल्लू का दूसरा समूचा पीस मुझे अपने दादा जी की पोटली में से मिला था। उसके टूटे हुए हिस्से के नीचे ‘सत्यम’ लिखा था। मैं तभी समझ गया कि यही वह घड़ी है, जो मेरे दादा जी को सबसे प्रिय थी। उल्लू का समूचा पीस मैंने इसलिए लगाया कि सेठ जी रात में डरें। उसके अंदर एक छोटा सा टेप रिकॉर्डर है, जो रात के बारह बजे बोलता है। दूसरे, जब उसकी बड़ी सुई बाहर निकालकर दुबारा लगाई जाती है, तो भी वह बोलता है। मैंने अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने के लिए सेठ जी से पांच घड़ी मेहनताना ली थी, ताकि सेठ जी का दिल थोड़ा भारी हो। रुपये देने पर सेठ जी का मन दुखी नहीं होता, मगर घड़ियां देने में सेठ जी को बहुत तकलीफ हुई होगी। यह सोचकर मैंने इनसे घड़ियां ली थीं। ” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “लेकिन वे घड़ियां जहां-जहां तुमने बेची हैं, वहां-वहां किसी न किसी का खून हुआ है। क्या ये खून तुम्हारी घड़ियां कर रही हैं? फिर तुम्हारी घड़ी की छोटी सुई कनपटी पर और सेठ जी की घड़ी की बड़ी सुई पेट पर वार करती है। इन दोनों सुइयों का क्या संबंध है?” लखनपाल बोला, “मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता।’ इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “अच्छा यह बताओ, तुमने ये घड़ियां किस-किसको बेची हैं?” लखनपाल बोला, “सर, ऐसे तो मुझे याद नहीं है। हां, एक साल की गारंटी की वजह से मैं जिसे भी घड़ी बेचता हूं, उसका रिकॉर्ड अपनी डायरी में रखता हूं। यह लीजिए मेरी डायरी और स्वयं देख लीजिए।” ” इंस्पेक्टर कुंदे ने डायरी देखी। प्रथम तीन व्यक्तियों के बारे में उसे पता था। चौथा नाम सेठानी का और पांचवां नाम सेठ जी के दामाद प्रमोद का था।

इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “चलो, चौथा खून सेठ जी के यहां हुआ, चाहे घड़ी सेठानी जी ले गईं। यह बात अलग है कि वह घड़ी नौकरानी के कमरे में लगाई गई। मगर पांचवीं घड़ी तो प्रमोद तुम ले गए थे। तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?” प्रमोद ने कहा, “सर, मैं आपको बताऊं तब, जब वह घड़ी मेरे पास हो। जिस , दिन मैं घड़ी लाया था, उसी दिन वह चोरी हो गई थी।” ” ए इंस्पेक्टर कुंदे ने पूछा, “यानी जिसने भी वह घड़ी चुराई है, उसकी मृत्यु अब निश्चित है। ” प्रमोद बोला, “सर, इस बारे में मैं यह कह सकता हूं कि उस चोर ने मेरी जान बचा ली।” सेठ जी उस घड़ी के बाबत सब कुछ सुनते रहे, मगर चुप्पी साधे रहे। वह अंदर ही अंदर इस बात से डर रहे थे कि अगर यह भेद खुल गया कि घड़ी मेरे पास है, तो क्या होगा? अंततः इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “आप लोगों में से कोई भी कहीं नहीं जाएगा। हम पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और लैब की जांच का इंतजार करेंगे। तत्पश्चात एक-दो दिन में खूनी तक पहुंच जाएंगे। आप सबके फिंगर प्रिंट भी जांच के लिए जा चुके हैं। हां, अगर आपमें से कोई मुजरिम है, तो सरेंडर कर सकता है। मैं उसकी सजा कम करा दूंगा, अन्यथा उसकी वह हालत होगी, जैसे सड़क के कुत्ते की होती है।” थोड़ी देर बाद इंस्पेक्टर कुंदे ने लखनपाल को एकांत में बुलाकर पूछा, “तुम्हारी डायरी को तुम्हारे अलावा और कौन देखता है?” लखनपाल ने कहा, “सर, प्रमोद मेरा मित्र है। हम साथ-साथ पैग भी लगाते हैं। कई बार वह मेरी डायरी को आगे-पीछे करके देख लेता है।” इंस्पेक्टर कुंदे ने लखनपाल से कहा, “अब तुम एक काम करो। पांचवीं घड़ी का पता बदल दो। तुम अपनी डायरी में मेरा पता लिखकर वह डायरी प्रमोद के आगे रख देना और कोशिश करना कि वह मेरा पता पढ़ ले। मुझे लगता है कि तुम खूनी नहीं हो, इसलिए इस कार्य में मेरी मदद करो, ताकि मैं असली खूनी तक पहुंच सकूं।” लखनपाल ने इंस्पेक्टर कुंदे की बताई बातों पर अमल किया और अगले दिन डायरी प्रमोद के सामने रख दी। दोनों ने पैग लगाए। प्रमोद ने पूछा, “यार, यह खूनी कौन हो सकता है और पांचवीं घड़ी का चोर कौन है?” लखनपाल को सेठ जी की मुलाकात याद आ गई। लखनपाल ने मंद-मंद मुस्कराकर कहा, “मेरी नजर में कोई तेरा अपना ही चोर है। उसने तेरी जान बचाने के लिए घड़ी तेरे घर से गायब कर दी। जहां तक खूनी की बात है, तो भाई, मैं तो नहीं हूं। बाकी का मुझे कुछ पता नहीं। लेकिन भाई, कुछ भी कहो-खूनी है बड़ा शातिर। उसने तो मुझे फंसाने का षड्यंत्र ही रच डाला था। ” इसी बीच प्रमोद ने उसकी डायरी उठाकर देखा और पांचवीं घड़ी खरीदने वाले व्यक्ति का पता याद कर लिया। प्रमोद ने सोचा-मेरी चोरी हुई घड़ी लखनपाल ने दुबारा बेच दी है। अतः उसने पूछा, “लखनपाल, मेरी घड़ी तो चोरी हो गई थी। फिर तूने उसे मुझे वापस न करके दुबारा क्यों बेच दी ?” लखनपाल ने कहा, “कैसी बातें कर रहा है! मैंने तो वह घड़ी बेची ही नहीं। प्रमोद बोला, “फिर इस डायरी में उस नये व्यक्ति का पता कहां से आया?” लखनपाल ने सफाई दी, “मुझे लगता है कि यह उस चोर की ही शरारत है। चल छोड़, इससे हमें क्या?” मगर कहते हैं कि चोर की दाढ़ी में तिनका । अतः प्रमोद यह जानने के लिए कि घड़ी किसके यहां है, उस पते पर गया और बाहर से देखकर लौट आया। मगर इंस्पेक्टर कुंदे ने प्रमोद का आना-जाना देख लिया था। सुबह इंस्पेक्टर कुंदे जांच के सारे कागज और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट लेकर सेठ जी के घर पहुंच गया और वहीं सब लोगों को एकत्र कर लिया। इंस्पेक्टर कुंदे कुछ देर सोचने के बाद बोला, “सारे खून सेठ जी की घड़ी की बड़ी सुई से हुए हैं और कनपटी पर वार, जो घड़ी जिसने भी ली, उसकी छोटी सुई से हुए है। अब खून हुए हैं, तो किसी ने तो किए ही हैं। मुझे उस खूनी का पता चल चुका है। वह यहां बैठे हुए लोगों में से ही कोई एक है।” तत्पश्चात इंस्पेक्टर कुंदे ने घड़ीसाज लखनपाल को पकड़कर कहा, “बताओ, तुमने ये खून क्यों किए?” लखनपाल बोला, “मैंने कोई खून नहीं किया। यह झूठ है। सेठ जी ने मुझे फंसाने के लिए साजिश रची है। क्योंकि जो पांचवीं घड़ी चोरी हुई है, मैं दावे से कह सकता हूं कि वह सेठ जी के पास है।” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “शाबाश! तुम्हारी होशियारी की दाद देनी चाहिए।” फिर वह सेठ जी से बोला, “सेठ जी, इस बारे में आप क्या कहते हैं?” सेठ जी बोले, “हां सर, वह घड़ी मेरे पास है। मैंने प्रमोद की जान बचाने के लिए ही वह घड़ी उसके घर से चुराकर अपने घर में छिपा दिया था।” इंस्पेक्टर कुंदे बोला, “कमाल है, एक खूनी को बचाने के लिए आपने घड़ी की चोरी की। खैर, यह तो आपका कर्तव्य था। मगर आपने वह घड़ी सेठानी जी के पास से हटाकर नौकरानी के कमरे में लगाई, तो नौकरानी के खून में आप भी भागीदार हुए।” सेठ जी बोले, “सर, आप ठीक कह रहे हैं, मगर मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था । ” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “जैसे आपने पांचवीं घड़ी छिपाई थी, वैसे ही चौथी घड़ी को भी छिपा सकते थे।” सेठ जी बोले, “सर, मुझे पक्का यकीन नहीं था कि ये मौतें घड़ियों की वजह से हो रही हैं। बस मैंने अपना शक यकीन में बदलने के लिए वह घड़ी नौकरानी के कमरे में लगाई थी । ” इंस्पेक्टर कुंदे ने कहा, “हां तो प्रमोद, यह इतना बड़ा नाटक तुमने क्यों खेला? तुमने ही लखनपाल से कहकर सेठ जी की घड़ी में उल्लू तथा टेप-रिकॉर्डर लगवाया था। तुमने ही घड़ी की सुइयों से सारे खून किए। क्योंकि तुम यह जान चुके थे कि घड़ी की बड़ी सुई के नीचे भारी चुंबक लगा हुआ है। अगर उसे किसी के शरीर में घोंपा गया, तो वह मर जाएगा। दूसरे, चुंबक की वजह से सुई पर खून का निशान थोड़ी देर में स्वतः मिट जाएगा। तुमने अपनी पत्नी को नींद की गोलियां बिना किसी बीमारी के दीं। क्योंकि उसे मालूम नहीं था कि वह नींद की गोलियां खा रही है। तुम उसे नींद की गोलियां खिलाकर ये खून करते रहे। अब अगर तुम अपने जुर्म का इकबाल नहीं करते, तो मेरे पास दूसरा रास्ता भी है। सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ हैं। घड़ी की सुई पर हर जगह सिर्फ एक ही व्यक्ति की उंगलियों के निशान हैं, जो तुम्हारी उंगलियों की छाप से मेल खाते हैं। अब हमें यह बताओ कि ये खून तुमने क्यों किए?” प्रमोद बोला, “सर, आप मेरे विरुद्ध बहुत कुछ जान चुके हैं, अत: अब झूठ बोलना व्यर्थ है। ये सारे खून मैंने ही अकेले किए हैं। सेठ जी के पास इतना धन होते हुए भी इन्होंने कभी हमारी आर्थिक सहायता नहीं की। हमेशा मुझे लताड़ते रहे। रिश्तेदारों में मेरा मजाक उड़ानां सेठ जी की आम आदत थी। एक दिन मैंने तय कर लिया कि सेठ जी को ऐसी जगह फंसाऊंगा कि उन्हें मालूम पड़ जाएगा कि दामाद की खिल्ली उड़ाना कितना महंगा पड़ता है। मैंने समझा कि इन सारे खूनों का इल्जाम लखनपाल और सेठ जी पर लग जाएगा। सेठ जी जेल चले जाएंगे और मैं इनकी पूरी संपत्ति का वारिस बनकर ऐश करूंगा, क्योंकि मेरी पत्नी इनकी एकमात्र संतान है। मगर इंस्पेक्टर कुंदे! तुमने मेरी सारी मंशा पर पानी फेर दिया। अब मैं तुम्हें भी जिंदा नहीं छोडूंगा।” फिर प्रमोद ने घड़ी की बड़ी सुई निकालकर इंस्पेक्टर कुंदे को मारने दौड़ा। इंस्पेक्टर कुंदे ने प्रमोद के पैर पर गोली मारकर उसे गिरफ्तार कर लिया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि बुरा करने वाले की आंखें बुराई में बंद हो जाती हैं और वह बदले की भावना में अपनों को भी भूलकर ऐसा पाप कर बैठता है, जिसका परिणाम वह कार्य करने के बाद समझ में आता है।। लेकिन हर बुराई के पीछे एक अच्छाई अवश्य छिपी होती है। अंतत: जीत तो अच्छाई की ही होती है, बुराई को तो मिटना ही पड़ता है। लेकिन तब की तक बहुत देर हो चुकी होती है।

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