The Guest House

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The Guest House

The Guest House – छुट्टियों में घूमने जाने का मज़ा ही कुछ और होता है। वो जाने की planning, वो packing, वो shoppings, कुछ दिनों के लिए ये सारे ही चीज़े ज़िंदगी में एक उत्साह ले आती है । इस बार उसी उत्साह से हमने अगले हफ्ते अपने cousin के साथ by road मंसूरी जाने का प्रोग्राम बनाया।

आइए मिलवाता हूं अपनी फैमिली से ! मैं, यानी अमित, मेरी पत्नी कृति, जो एक co-operative house में marketing की job करती है और मेरे दो प्यारे बच्चे ईशा और इशांत तीसरी और पचवीं class में पढ़ते है। मेरा cousin अभिषेक electrical equipments के काम में मेरा partner है और उसकी पत्नी राधा, वैसे तो ‘होम मेकर’ है पर आजके online  ज़माने में उसने अपनी cooking hobby को अपना profession भी बना लिया है। राधा cooking show के नाम से उसका YouTube पे channel है। अक्सर हम लोग हर 3=4 महीने में कही न कही का प्रोग्राम बना ही लेते थे और इस बार बारी आई मसूरी की।

शुक्रवार की सुभा हम 9 बजे हम अपनी कार लेके दिल्ली से अपने सफर को चल दिए। सर्दियों में हिल स्टेशन जाने का मज़ा ही कुछ और होता है। मज़े से गाने सुनते सुनते रास्ते में चिप्स, sandwitches का मज़ा लेते हुए हम google map को फॉलो करते करते देहरादून cross कर गए। शायद आगे कुछ पहाड़ गिर गया था जिसकी वजह से google map ने हमें दूसरा रास्ता दिखा दिया। हमारे लिए तो अच्छा ही हुआ क्यूंकि इस नए रास्ते से उल्टा हम आधे घंटे पहले पहुंच रहे थे।  मेरे हिसाब से तो हमें ज्यादा से ज्यादा पाँच बजे तक पहुंच जाना चाहिए था। पर ये map पता नही क्यूं बार बार रास्ता बदलता जा रहा था। कृति, राधा और बच्चे अब परेशान हो रहे थे। लेकिन हम भी क्या कर सकते थे ।

थक हार के किसी राहगीर से पूछा के भाई मंसूरी जाना है तो वो भाई साहब जिन्होंने एक बोरी जैसी शॉल लपेट रखी थी हाथ ऐसे जैसे कितने दिनों से नहाया न हो, पहाड़ी टोपी पहने बीड़ी सुलगाते हुए बोले “ये कहा आ गए बाऊजी ये तो बुरिया गांव है । मंसूरी तो पल्ली तरफ दूसरी पहाड़ी पे है। कम से कम 3 घंटे लगेंगे आपको यहां से मंसूरी पहुंचने में।”

मैने अभिषेक को देखा और अभिषेक ने अपनी बीवी राधा को ।

“3 घंटे ना ना 3 घंटे तो अब हम नही बैठ सकते गाड़ी में !यही कही आस पास कोई होटल या resort देखलो” राधा ने काहा।

राहगीर से पूछा होटल के बारे में तो बोला “भाईजी यहां कहां होटल , हा थोड़ा सा नीचे उतरोगे तो एक Guest House मिल जाएगा आपकी आज रात तो निकल ही जाएगी पर ज़रा ध्यान से जाइयेगा।”

ये कहके वो आगे चल दिया।

मैने पूछा “अरे भाई ध्यान से जाइयेगा से आपका क्या मतलब है”! पर उसने जैसे हमारी बात अनसुनी करदी और चलता रहा।। खैर अब बस किसी तरह उस The guest house पहुंचने की जल्दी थी इसलिए उसकी ‘ध्यान से‘ वाली बात ignore कर दी l काश ना की होती ।। वो कहके तो चला गया के बस नीचे उतर के guest house है पर जैसे ही हमने गाड़ी बाएँ की तरफ़ ली तो रास्ता बिलकुल सुनसान था । पहाड़ों ने सड़क को ऐसे घेर रखा था जैसे हम किसी सुरंग में जा रहे हो। जो बहती नदी की आवाज़ दिन में सुकून देती है वही इस अंधेरी रात में दिल में हौला कर रही थी। हवा में इतना सन्नाटा था के अपनी सासों की आवाज़ भी साफ सुनाई दे रही थी। मन में खयाल आ रहे थे के अगर गाड़ी खराब हो गई तो, अगर आगे रास्ता बंद हुआ तो, ये फोन की battery भी । तभी राधा ने अपनी तरफ की खिड़की बंद करते हुए काहा -“भैया, मुझे तो डर लग रहा है, कोई जानवर वानवर आ गया तो”

पर हम सब जानते थे के उसे किसी जानवर से नही , भूत से डर लगता है। वैसे बच्ची ही तो थी , मुझसे और कृति से तो 12 साल छोटी थी । तभी कृति ने काहा -“अरे राधा यहां कोई भूत नहीं आएगा।”

मैंने भी उसको डराते हुए बोला -‘अरे राधा देख देख देख आगे एक सफेद रंग की साड़ी में चुड़ैल खड़ी है”। और ये कहके राधा के अलावा वहां सब हंस पड़े।

मैने काहा -“अरे राधा ये भूत वूत कुछ नही होता सब मन का वहम है।”

The Guest House मिलने से पहले मेरी भी यही सोच थी।

“अरे अमित ये देख देख दायएं तरफ एक guest house का board लगा हुआ है, गाड़ी यही पे लगा , देखे के आता हूं।”

ये कहके अभिषेक सबसे पहले गाड़ी से उतर के guest house के अंदर चला गया।। मैं भी गाड़ी side लगा के समान गाड़ी में ही छोड़ के सबको अंदर लेकर चला गया। उस रात शायद अमावस्या की रात होगी तभी सड़क पे बिलकुल भी रोशनी नहीं थी। guest house के अंदर गए तो वहां एक छोटे से कमरे में बस दो मोमबत्ती जल रही थी। एक पुरानी लकड़ी की टेबल और एक टूटी सी plastic की कुर्सी के सामने अभिषेक आवाज़ लगा रहा था,-“अरे भाई कोई है क्या,?  कोई है क्या?

तब तक हम सब भी वहा पहुंच गए। एक दरवाज़ा था जो थोड़ा सा खुला हुआ था।

मैने अभिषेक से काहा “ज़रा दरवाज़े को खट खटाके देख।”

अभिषेक ने दरवाज़ा खटखटाया — —- पर कोई आया ही नहीं ।

मैने काहा “रुक अंदर जाके देखता हूं”,और आगे आके मैने दरवाज़ा खोला तो वहां बिलकुल गुप अंधेरा था, मैं तो आगे नहीं गया और सबसे बोला-” शायद ये वो guest house नही है, गाड़ी में बैठो आगे चलके देखते है।”

हम वापस जा ही रहे थे , अचानक पीछे से आवाज आई -“बोलिए बाउजी क्या चाहिए ।”

मैने मुड़ के देखा तो एक 13 = 14 साल का लड़का फटा हुआ सा कम्बल ओढ़े खड़ा हुआ था।

मैने  काहा बेटा -“हमें आज रात के लिए दो rooms चाहिए अपने पापा को ज़रा बुलादो तो बड़ी मेहरबानी होगी।

वो बोला-” पापा मम्मी तो सो चुके है । मैं आपको कमरे दिखा देता हूं पर हाँ 500 रुपे लगेंगे एक कमरे के।

मैंने मन में सोचा के इस वक्त तो 5000 भी मांग लेता तो दे देते। उसने वही रखी एक मोमबत्ती उठाई और उसी दरवाज़े से हमें अंदर ले गया , गाड़ी से ज़रूरी सामान निकाल के मैं कृति और बच्चो को और अभिषेक राधा को लेकर उसके पीछे पीछे हो लिए।

मैने पूछा -“बेटा यहां light नही है क्या।”

बच्चा बोला -“बाउजी ये कोई शहर थोड़ी ना है के 24 घंटे बत्ती रहेगी यहां तो बत्ती अपनी मर्जी से आती है अपनी मर्जी से जाती हैं। हो सकता है अभी थोड़ी देर में आ ही जाए ।

हमें तो किसी भी तरह बस ये रात निकालनी थी।

मैंने पूछा -“कुछ खाने के लिए मिल जाएगा ।”

बच्चा बोला -“Maggie उबाल के ला सकता हूँ । अगर कहो तो पर एक मैगी के  50 रुपे लगेंगे  ।

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मैने सोचा चलो शुक्र है कुछ तो है खाने के लिए । अपनी चिंता नहीं थी पर बेचारे ईशांत और ईशा ने सही से लंच भी नही किया था ये कहके के मंसूरी में kohli का ऑमलेट खाएंगे। हमने सब के हिसाब से उसे 6 MAGGIE बोल दी और साथ में अपने साथ लाए chips भी खोल लिए। 5 मिनट में वो बच्चा मैगी ले आया सबने सोचा इतनी जल्दी इतनी जल्दी कैसे ले आया पहले से बनी रखी हुई थी क्या । मैं भी हैरान था पर क्या कहूं उस दिन तो सारी बातें ही हैरान करने वाली हो रही थी।। बच्चे को मैंने 500 का नोट देते हुए बहुत बहुत धन्यवाद किया और बाकी बचे पैसे उसे रखने के को दे दिए।।

जाते जाते वो बोला -“बाउजी खिड़की दरवाज़े बंद करके ध्यान से सोयिएगा।”

जैसा के मैंने बताया  के मुझे भूत प्रेत से कोई डर नहीं लगता पर उस जगह में कुछ तो नकारात्मक कंपन थी। कुछ तो ऐसा था जो ना होते हुए भी महसूस हो रहा था।। लेकिन रात तो निकालनी ही थी तो अभिषेक और राधा अपने कमरे में एक मोमबत्ती लेके चले गए और मैं कृति बच्चो को लेकर उसी कमरे में लेट गया । अब सोना ही था तो मैंने मोमबत्ती भुझा दी। अभी आंख लगी ही थी के दरवाज़े पे खट खट हुई।

कृति और बच्चे सो गए थे तो मैंने धीमे आवाज़ में पूछा -“कौन ?, तो बाहर से आवाज़ आई ‘भाई अभिषेक।’

मैने उठ के दरवाज़ा खोला तो अभिषेक बोला -“भाई सुट्टा ज़रा गाड़ी में रह गया, चल ना लेके आते है बिना पिए नींद नहीं आएगी।”

मैने काहा -“यार तेरी सुट्टे की तलब भी अजीब है । कभी भी उठ जाती है, रुक ज़रा शॉल तो ले लूं।”

चप्पल पहन के और शॉल लपेट के मैं अभिषेक के साथ गाड़ी से सुट्टा लेने चला गया। लाइट ना होने की वजह से मोबाईल की battery भी चार्ज नहीं हुई थी और मोमबत्ती जलाने के लिए कोई चीज भी नहीं था। उसी अंधेरे रास्ते से दरवाज़े को पार करके हम अपनी गाड़ी की तरफ चल दिए।

एक अजीब सा सन्नाटा जैसे आस पास के पहाड़ सांस ले रहे हों, दूर से जिगनूयो की आवाज़ भी आ रही थी और ऐसा लग रहा था मानो दूर कही कोई पत्थर घिसट रहा हो। अभिषेक ने गाड़ी से अपनी सिगरेट की डब्बी और लाइटर निकाला और वही एक सिगरेट निकाल के फुकने लगा। अभी अभिषेक की सिगरेट आधी भी नही जली थी के अचानक मेरी कमर पे एक हाथ आया।। मैं भौचक्का पीछे मुड़ा तो देखा वो बच्चा कंबल ओढ़े खड़ा था ।

मैंने पूछा -“क्या क्या हुआ तुम सोए नहीं इतनी रात को , यहां क्या कर रहे हो।”

वो बच्चा बड़ी मासूमियत से थोड़ा सा मुस्कुराते हुए बोला-” मैने काहा था ना खिड़की दरवाज़े बंद रखियेगा ! ध्यान से सोईयेगा !”

अभिषेक हस्ते हुए बोला “अरे बेटा अभी हम सोए कहा है”। वो लड़का हंसते हंसते भागते हुए वहा से चला गया।। मुझे एक दम याद आया के हम तो अपने कमरों का दरवाज़ा खुला छोड़ के आ गए । कृति , राधा और दोनों बच्चे तो अकेले ही सो रहे है। अभिषेक भी घबराया और अपनी सिगरेट फेक के मेरे साथ तेज़ रफ़्तार से कमरों की तरफ़ चल दिया। अभिषेक ने अपनी सिगरेट का लाइटर जलाया पर अंधेरा इतना था के कमरे तक जाने के लिए हमें दीवारों को हाथ लगा लगा के अनुमान लगाना पड़ रहा था । चिंता में मेरे पैर ऐसे जम गए जैसे आगे जाने का नाम ही नही ले रहे हो । बार बार मुझे उस बच्चे की हंसी सुनाई दे रही थी जो कह रही थी के जैसे वो चाहता था वैसा ही हो गया ।। किसी तरह हम उस छोटे से कमरे तक पहुंचे तो देखा जो दरवाज़ा खुला रहता था वो बंद पड़ा है। मैने धक्का मारा फिर भी नहीं खुला । अभिषेक ज़रा तू देख ये दरवाज़ा क्यूं नही खुला रहा ये कहके मैं पीछे आया तो ऐसा लगा कोई मेरे पीछे खड़ा सांसें ले रहा हो। अभिषेक से lighter लेके मैंने पीछे की तरफ देखा तो मेरी तो जैसे सांस ही अटक गई ।

“तुम , तुम तो वही हो ना जिसने हमें इस ‘The Guest House‘ के बारे में बताया था। तुम इस वक्त यहां कैसे।”

उसने मेरे जलते हुए lighter से अपनी बीड़ी सुलगाई और एक कश लेता हुआ बोला-“मैंने तो आप को पहले ही चेतावनी दी थी बाउजी ध्यान से जाइएगा।”

“अरे हां दी थी पर पर तुम हो कौन और अब ये दरवाज़ा क्यूं नही खुल रहा, वो बच्चा वो बच्चा काहा है ये दरवाज़ा खुलवाओ मेरे बीवी बच्चे अंदर अकेले है ।”

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

अभिषेक ने मुझसे काहा “भाई रुक तीनों मिल के धक्का मारते है दरवाज़ा खुल जाएगा।”

मैने उस राहगीर से मदद के लिए बोला तो देखा वो फिर गायब। अभिषेक ने मेरा हाथ पकड़ा और कंधे से कंधा मिला के दरवाज़े को धक्का दिया तो दरवाज़ा एक बार में खुल गया। मैं अपनी रफ़्तार बढ़ाता हुआ कमरे की तरफ़ जा रहा था और अभिषेक मेरे पीछे आ रहा था। कमरे में पहुंच के मेरी जान में जान आई , कृति और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे। भगवान का शुक्र है ,सोचा यहां कुछ ठीक नहीं है अभी निकल लेते है यहां से।

पर अचानक से अभिषेक की आवाज़ आई -“अमित!अमित! भाई अमित !

वो अंधेरे में अपने होशो हवास खो के भागा भागा मेरे कमरे में आया-“भाई! राधा कमरे में नहीं है। भाई! कमरे की खिड़की भी बंद है, बाथरूम में भी नही है, पता नहीं कहा चली गई भाई।”

इतने में  कृति की  नींद खुल गई, बोली “राधा नही है मतलब , वो कहां गई”

मैंने काहा ‘कृति, तुम बच्चो को लेके इसी कमरे में सारे दरवाज़े और खिड़की ताला करके बैठो, हम अभी राधा को ढूंढ के आते है। बाक़ी बात तुम्हे आके बताता हूं। बस खिड़की दरवाज़े बंद रखना please।”

अभिषेक ने अपने कमरे से मोमबत्ती उठाई और अपने लाइटर से जला के मेरे साथ फिर बाहर की तरफ़ चल दिया।।

“राधा! राधा!राधा!….

राधा अब नही आयेगी ! अब वो मेरे साथ खेलेगी” ये कहके वो बच्चा फिर हंसते हंसते भागा।।

उस बच्चे को पकड़ने के लिए हम दोनो भी उसके पीछे भागे।। और पीछा करते करते हम उसके पास पहुंचे तो देखा वो बच्चा एक पेड़ के नीचे बैठा था।।। जो 500 रुपे का नोट मैंने उसे दिया था उसकी कागज़ की नाव बना रहा था,

“राधा चल खेलते है, चल ना , अब हम रोज़ खेल सकते है चल ।”

कुछ समझ नही आ रहा था , हम दोनो ने बच्चे की तरफ़ कदम बढ़ाए । उसके पास पहुंचे तो वो गायब। पेड़ के पीछे उसे ढूंढने जैसे ही गए तो ।।।

राधा!!!!!——– अभिषेक वही बेहोश हो गया।।
राधा की लाश पेड़ पे झूल रही थी।।
“अभिषेक!! उठ भाई उठ, हमे यहां से भागना होगा, उठ भाई ।”

बड़ी मुश्किल से उसको अपने कंधे का सहारा देके मैंने उठाया और सीधा गाड़ी में जाके लिटा दिया।।।उसी अंधेरे में मैं कृति और बच्चों को लेने भागा।।

“कृति, चलो हमें इसी वक्त यहां से निकलना है, चलो तुम ईशा को गोदी में ले लो मैं इशांत को ले लेता हूं, जल्दी जल्दी चलो।” कृति कुछ भी पूछती उससे पहले मैने उसका हाथ पकड़ा और तेज़ तेज़ चलना शुरू कर दिया।।। जितनी तेज़ मैं आगे बढ़ रहा था उतनी ही तेज़ी से लग रहा था के कोई मेरा पीछा कर रहा है।। अब मुझे बस किसी भी तरह कृति और बच्चो को लेके गाड़ी तक पहुंचना है।।
मुझे ईशा और ईशांत के साथ भी खेलना है मुझे ईशा और इशांत के साथ भी खेलना है” रोते रोते वो बच्चा मेरे पीछे पीछे आ रहा था।।
मैं बस भागता रहा और वो मेरा पीछा करता रहा ।।।
आखिर मैं गाड़ी तक पहुंच ही गया , बच्चो को पीछे अभिषेक के साथ पीछे सीट पे बिठाया और कृति मेरे साथ आगे और मैंने गाड़ी भगाई।।। वो आवाज़ मेरा अभी भी पीछा कर रही थी।।।

|| मुझे ईशा ईशांत के साथ खेलना है ||

पर मैं बस गाड़ी भगाता रहा।। अभिषेक बेचारा पीछे बेहोश पड़ा था।।
मैं जानता हूं के राधा को वहा ऐसे छोड़कर आना , इस बात को मैं कभी भी उचित नही ठहरा सकता, पर उस वक्त जो मुझे ठीक लगा मैने किया।।
कृति और बच्चो को मंसूरी के होटल में छोड़ के मैं और अभिषेक वापस उसी guest house पहुंचे।

पर अब वहा पे कोई नही था

ना राधा की लाश

ना वो बच्चा।।
राधा की मौत एक रेहेस्यामक मौत बन के ही रह गई ।।।
वो रहस्य जो आजतक किसी को नहीं पता ।।।।

लेखक – Shailabh Bansal

तो दोस्तों आज की कहानी में कुछ सच था या नहीं, कोई रहस्य था के नही, ये तो आपके अपने अनुभव पे निर्भर करता है।।
अगर आपको ये कहानी याची लगे तो हमें जरूर बताएँ। इस कहानी को आप podcast पर भी सुन सकते हैं।

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